सोचता हूँ, हो जायूं नौ दो ग्यारह, नहीं होता मुझसे समय का बंटवारा कहते है आया नया साल, कोई नयी बात या फिर वही हिन्दुस्तानी भेड़ चाल, दिखते नहीं कोई नए सवाल, संकुचित होती मानसिकता वही चमड़ी वही खाल खुशी नए साल कि ? या जश्न २०१० से छुटकारे का, जो बीत गयी सो बात गयी, पीछे मुड़ने कि जरुरत नहीं समय बलवान है, और कुछ अपने हाथ नहीं! फिर भी आप आज नाच रहे हैं, इशारा किसका है? डोरी किसके हाथ में है?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।