सवाल? क्यों लोग लगे रहते है दिन भरने में, रोज़-रोज़ वही करने में जिसमें जी नहीं? ये कहते हुए कि ये ज़िंदगी का सच है, गुजारे की demand - too much है? क्या उऩ्हें मजबूर करता है? अपने अंतर से दूर करता है? क्यों ये सवाल? क्यों वक्त के मारों के जख्म पर नमक छिड़क रहे हो मेरे भाई ? चल रहे हैं वही जिंदगी ने जो राह दिखाई , आप ने सपनों को रास्ता बना लिया , अपनी मुश्किलों का नाश्ता बना लिया , आईने के सामने खड़े होकर सिर्फ़ अपनी खूबसूरती या उसकी कमी को परखने कि जगह , आपने सवाल पूछ लिये ? तो लो अब भुगतो , अब आपको जिंदगी मज़े से जीनी पड़ेगी , कभी आप भी परेशानियों से अपना सर खुजाएंगे , ( तेल क्यों नहीं लगाते हीरो ) पर फ़िर भी मुस्काराऐंगे , आपने अपने सपनों को पालना सीखा है , पर घर और स्कूल में उनको टालना सिखाते हैं , और जरूरतों का क्या बतायें , उसकी परिभाषा कहां से लायें , देखो तो , लाखों हवा खा कर भी जिंदा हैं ? सवाल लाख टके का है ? ताकत किसके हाथ में है ? " कौन कहता है कि चक्की में पिसे रहो ?" घर - बाहर , स्कूल , जाने
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।