होली मुबारक हो बुरा न मानो , आज कीचड़ रंग है , इसलिये दुनिया रंगीं बनी है ! सच पूछिये तो कीचड़ में सनी है , सवाल है , साल भर कहाँ रहती है ? ये कीचड़ ? बेशरम आखों में कीचड़ = बलात्कार फ़ैले हुए हाथों में कीचड़ = रिश्वत अमीर इरादों में कीचड़ = किसानों की अपनी जमीन से बेदखली झूठे वादों में कीचड़ = राजनीति अंधे यकीनों में कीचड़ = ब्राह्मणवाद मज़हबी पसीनों में कीचड़ = दंगे . . . . होली है सब भूल जाओ , माफ़ करो , दिल साफ़ करो यानी होली भी गंगा स्नान है साल भर की कीचड़ आज साफ़ है खुद ही गलती और खुद ही माफ़ है , बुरा न मानो जो आप का गरेबाँ फ़ाड़ दिया होली की यही रवायत है आपको क्यों शिकायत है , बुरा न मानो होली है !
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।