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मार्च, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कीचड़-ए-होली!

होली मुबारक हो बुरा न मानो , आज कीचड़ रंग है , इसलिये दुनिया रंगीं बनी है ! सच पूछिये तो कीचड़ में सनी है , सवाल है , साल भर कहाँ रहती है ? ये कीचड़ ? बेशरम आखों में                  कीचड़ = बलात्कार फ़ैले हुए हाथों में                  कीचड़ = रिश्वत अमीर इरादों में                  कीचड़ = किसानों की अपनी जमीन से बेदखली झूठे वादों में                  कीचड़ = राजनीति अंधे यकीनों में                  कीचड़ = ब्राह्मणवाद मज़हबी पसीनों में                  कीचड़ = दंगे . . . .  होली है सब भूल जाओ , माफ़ करो , दिल साफ़ करो यानी होली भी गंगा स्नान है साल भर की कीचड़ आज साफ़ है खुद ही गलती और खुद ही माफ़ है , बुरा न मानो जो आप का गरेबाँ फ़ाड़ दिया होली की यही रवायत है आपको क्यों शिकायत है , बुरा न मानो होली है !

आँखों का पानी?

आज महिला दिवस है, मुबारक कहते हैं  बराबरी की बात पर, सब नदारद कहते है ! 364 दिन लाचार करते हैं, और फिर एक दिन मुबारकबाद , सच्चाई समेटने को कर दिए कितने दिन बर्बाद कहने को तो और भी महिला दिवस है, ताज़ा खबर है और गरम बहस है!   आज महिला दिवस है, कहते हो तो मान लेते हैं , पर वो हालात कहाँ, कि देखे और जान लेते हैं ! आज महिला दिवस है, शहर में नयी सर्कस है, सट्टा लगा है, सूना है बड़ी ताकतवर बला है ! आज महिला दिवस है,  सुनते हैं संसद में बहस है, अँधेरे कोने में तड़पती, न जाने कितनी बेबस हैं !!  आज महिला दिवस है, क्या कोई बहस है, लार टपकती नहीं शायद, पर वही हवस है ! एक और गुजर गया, सामने क्या बहस का असर गया, खबर बनती रही चौबिसों-सात आँखों से पानी उतर गया!