कुदरत नेमत है और, ख़राब इंसानी नीयत, ऊपर से ये शिकायत, की ठीक नहीं हालात! कुदरत शिकार है इंसानी फितरत की, इंसान तरक्की का शिकार है! रात भर सो उठे और सुबह इनाम मिली, प्रकृति की सोच सहज ओ आसान मिली! हमारी क्या प्रकृति है? दुनिया कि क्या आकृति है? प्रकृति से हमारा क्या रिश्ता है? या सामान मुफ़्त ओ सस्ता है सब एक दूसरे को कोसते हैं, जाने कैसे हम जीवन पोसते हैं!?? रोशनी चमकती है पर अँधा कर जाती है, सच देखने के सब तरीके बदल गए हैं!! अंधेरो में ऐसी क्या ख़ास बात है, सब अपने रस्ते निकल गए है! प्लास्टिक के फूलों से सजावट सब तरफ, दुनिया में तरक्की के नए खेल चल गए हैं !
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।