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अगस्त, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कसम कुदरत की!

कुदरत नेमत है और, ख़राब इंसानी नीयत, ऊपर से ये शिकायत, की ठीक नहीं हालात! कुदरत शिकार है इंसानी फितरत की, इंसान तरक्की का शिकार है! रात भर सो उठे और सुबह इनाम मिली, प्रकृति की सोच सहज ओ आसान मिली! हमारी क्या प्रकृति है? दुनिया कि क्या आकृति है? प्रकृति से हमारा क्या रिश्ता है? या सामान मुफ़्त ओ सस्ता है सब एक दूसरे को कोसते हैं, जाने कैसे हम जीवन पोसते हैं!?? रोशनी चमकती है पर अँधा कर जाती है, सच देखने के सब तरीके बदल गए हैं!! अंधेरो में ऐसी क्या ख़ास बात है, सब अपने रस्ते निकल गए है! प्लास्टिक के फूलों से सजावट सब तरफ, दुनिया में तरक्की के नए खेल चल गए हैं !

रहने दो!

मुश्किलों को तुम मेरी आसान रहने दो, अभी खुद को तुम मेरी जान रहने दो! ज़िन्दगी सफर है बस यही काम रहने दो, मंजिलों को अभी ज़रा अंजान रहने दो! भूल जाएं सब शिकायतें ओ शिकवे सफर में ज़रा कम सामन रहने दो! तुम ही हो मेरी दुनिया में और क्या, ये दुनिया बस मेरे नाम रहने दो! आईना भी और परछाई भी हैं दोनों, लाज़िम है यही, यही पहचान रहने दो! साथ हैं बस उसी में सारी बात है, ज़ाहिर हैं, वही मेरे अरमान रहने दो!

राखसाबंधन

सलामती की बातों को क्यों जंज़ीरें लगती हैं, नेकनज़री को क्यों रिश्ते की तस्वीरें लगती हैं? क्यों आखिर रिश्तों को जंज़ीरें लगती हैं, मुकम्मल होने आईने को रंग नहीं लगते!? रिश्ते खून के सारे,कहने को मुसीबत सहारे, इंसानियत के नाम पर हम क्यों इतने बेचारे? क्यों रिश्तों में सिर्फ बंधना होता है, जैसे दूध दहने को कोई गाय है? राख सा बंधन है, ख़ाक सा बंधन है, चारदीवारों के बीच नाप का बंधन है! धर्म-संस्कृति पे मर्द की छाप का बंधन है! परंपरा संस्कृति, नीयत, किसकी, नियति किसकी? बहना ने भाई की कलाई पे, भाई ने बहन की आज़ादी पे, तहज़ीब ने आज़ाद सोच पे, जाने दीजिए, कुँए के बाहर की बात क्यों करें!!? (क्यों मर्द के गले में पट्टा न ड़ाल दिया जाये, सदियों से चले आ रहे कच्चे धागों ने तो इनकी नियत में कोई फ़र्क नहीं लाया?)

हवा-पानी ज़मीं-आसमाँ

हवा ने जब छु कर अकेलापन दूर कर दिया, और कभी उसी ने याद दिला दी तन्हाई की!! हवा को खुल कर छू लेने दीजे, कई शिकवे जिंदगी के हवा होंगे! ज़िन्दगी कभी भी नीरस लगे, एक पत्ते पर ज़रा गौर कर लें! मौसम बिखरे पड़े है हर ओर जीवन के, हर पल मुस्कराने की वजह मौजूद हैं! नज़ाकत के दौर ख़त्म हैं, सच जलते हैं आजकल, सर्दी में हाथ सेंकने को!! कब समझेंगे कुदरत एक तोहफा है, कब मानेंगे तरक्की एक धोका है!! सर्दी सर्द नहीं अब, गर्मी पूरी उबल गयी, प्रकृति वही है हमारी हकीकत बदल गयी! ज़मीं देखिये आसमाँ देखिये, ज़रा अपना जहां देखिये, ऊँची इमारतों में बैठ, ज़रा अपने गरेबाँ देखिये! ये आसमां है आज, ये समां है, आप के मुस्कराने का सामां है! कभीकभार, संभल कर, पत्तों को देखें, ........ अपने को पहचानें! अपनों को?

अपनी बातें!

कह दिया सब कुछ और अब शिकायत, हम बात करते हैं तुम्हारी बातें नहीं रहतीं! साथ सोये थे कल रात और अब ये बात, तुम्हारे साथ हमारी राते भी रातें नहीं रहती! एक ही लड़ाई है दुनिया से, हम दोनो की, साथ हों वो तो लड़ाई, लड़ाई नहीं रहती! यूँ नहीं कि हमको कभी शिकायत नहीं कोई, वो पुछ लें तो शिकायत, शिकायत नहीं रहती! कुछ गलतियाँ हम अक्सर कई बार करते हैं, हमें आदत है और उनको आदत नहीं रहती! दुनिया कि नज़रों में दोनो ही काफ़िर हैं, कैसे कहे हमारे बीच इबादत नहीं रहती! खुदा नहीं कोई अपने, फ़िर भी फ़रिश्ते हैं मुश्किलें यूँ ही हमारी, आसां नहीं रहतीं!

गाय - बायोडेटा

नाम - गाय पेशा - दूध धर्म - हिंदू जात - ऊँची, बड़ी, दबंग पद - सरकार परिवार - संघ   भाई - बजरंग बाप - बीजेपी माँ - वी एच पी दोस्त - राम सेना पता (घर का) - कचरे का ढेर, कोई भी सड़क, पता (ऑफ़िस) - नोर्थ ब्लॉक, केन्द्रिय सचिवालय दिल्ली नियमित पता (परमानेंट) - हेड़गेवार भवन, महल मार्ग, नागपुर भाषा - समझने वाली - ड़ंडा, घुँसा, लात, लाठी,प्यार का हाथ, गाली   भाषा - बोलने वाली - मेंएंएंएंएंएं   खाना - नॉन वेज फ़ेवरेट डिश - दलित, मुस्लिम की पीठ, इज़्ज़त, लाश