अपने ही रास्ते अब तय नहीं कर पाते, अपने ही सपनों में अब हम नहीं आते, अजनबी हो रहे हैं खुद से हर रोज़, जानते हैं अच्छे से पर मिलने नहीं जाते! कैसे कह दें के तमाम अरमान हैं, रास्ते अलग हैं दुसरे सामान हैं, मर्ज़ी की मज़बूरी के सब काम हैं, शिक़ायत है के बहुत आराम है! खुद से ही कई शिकायत हैं, पर वो हम कर नहीं पाते! कई शौक हैं मुक्कमल हमारे ओ शोक जो किनारे नहीं पाते!! खुद के ही सामने नहीं आते, ज़िक्र करते हैं सुन नहीं पाते! दूर नहीं हैं अपने उसूलों से, पर उतने नज़दीक नहीं जाते!! धुरी भी हम, चक्का भी हम, हम ही सवार हैं! दूरियां तय नहीं होती, हम ही जिम्मेदार हैं!! ख़ुद से बग़ावत हम कर नहीं पाते, संभले हुए हैं इतने, बहकने नहीं पाते!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।