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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपने से गुमशुदा!

अपने ही रास्ते अब तय नहीं कर पाते, अपने ही सपनों में अब हम नहीं आते, अजनबी हो रहे हैं खुद से हर रोज़, जानते हैं अच्छे से पर मिलने नहीं जाते! कैसे कह दें के तमाम अरमान हैं, रास्ते अलग हैं दुसरे सामान हैं,  मर्ज़ी की मज़बूरी के सब काम हैं, शिक़ायत है के बहुत आराम है! खुद से ही कई शिकायत हैं, पर वो हम कर नहीं पाते! कई शौक हैं मुक्कमल हमारे ओ शोक जो किनारे नहीं पाते!! खुद के ही सामने नहीं आते, ज़िक्र करते हैं सुन नहीं पाते! दूर नहीं हैं अपने उसूलों से, पर उतने नज़दीक नहीं जाते!! धुरी भी हम, चक्का भी हम, हम ही सवार हैं! दूरियां तय नहीं होती, हम ही जिम्मेदार हैं!! ख़ुद से बग़ावत  हम कर नहीं पाते, संभले हुए हैं इतने, बहकने नहीं पाते!

क़ाबिल सनम

ख़ुद से इंकार तो नहीं है, फिर भी, ये कब कहा कि हमको हम चाहिए? कोई दावत नहीं है दुनिया के गम को, ओ ये भी नहीं कहते के कम चाहिए! इंसानियत तमाशा नहीं है बाज़ार का, क्यों गुजारिश के आंखे नम चाहिए? इरादे आसमान पहुंच जाते हैं, तय बात! मुग़ालता है के बाजुओं में दम चाहिए! भगवान के नाम पर तमाम काम हैं, इंसान को ज़िम्मेदारी ज़रा कम चाहिए! कोई अलग है तो वो उन्हें नामंज़ूर है, सरपरस्तों को मुल्क नहीं हरम चाहिए! ताक़त से अपनी सब सच कर डालेंगे, इंसाफ़ नहीं फ़क्त उसका भरम चाहिए! क़ुबूल है कहने वालों की कीमत बड़ी, उनको कहाँ क़ाबिल सनम चाहिए? तमाम हैं हम फ़िर भी अकेले हैं, कारवाँ होने को दूरी कम चाहिए! उम्मीद जिंदा भी है और होश भी, कोई कह दे बस के हम चाहिए!