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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सब हमसफ़र!

ये एक सुबह थी,  कोई एक वजह थी, सब मौजूद दे, ठीक वहीं,  जहां उनकी जरूरत थी, उनको भी, वहां ही होना था, उनकी भी एक वजह थी! रास्ते में सब हमसफ़र हैं! आप क्यों अकेले हैं? हर ओर मेले हैं, ज़िंदगी के ज़िंदगी को आप क्यों रुके हैं? दो कदम चलिए! ज़िंदगी हमसफ़र है!

पास समंदर!

 पास समंदर  और दूर तक, साथ भी ओ अपने आप भी, मिले भी ओ अंजान भी, पहचान हुई, बस नाम की, किनारे ज़रा तर लिए, चुल्लू भर लम्हे लिए, आए ओ गुज़र लिए, ठहरना क्या है? क्यों है? सफ़र भी घर है, रास्ते कभी, किसी को रोकते नहीं!! चलिए, बह लीजिए!

रंगत रम के!

 छाए हुए या समाए हुए, अपनी धुन में रमाए हुए, दुनिया को अपना बनाए हुए, बन-संवर कर आए हुए, न बने हुए न बनाए हुए, यूँही बस एक शाम को, निकल आए बस नाम को, हक़ीकत के समझान को, उम्मीद के अजमान को, काहे तुम नज़र झुकाते हो, क्यों किस्मत को आज़माते हो, क्यों झूठ मूठ हो जाते हो, रंग जाओ, रंगत लाओ रम जाओ, सच सामने है!

भाषा की आशा

भाषा है तो परिभाषा है, आशा है, निराशा है, (डिप्रेसन नहीं) समय ने तराशा है, उम्मीद है दिलासा है, (कंसोलेशन नहीं) पैसों की सबको अभिलाषा है, इसी लिए अंग्रेजी का चला सा है 😊 अपनी भाषा जमीन है, इंग्लिश आसमान है, पर बिना जमीन के कैसा आसमान? क्या होगी हमारी पहचान? दूसरे की सिखाए हुए, अपनी गवाएं हुए, अनेकता के यतीम!? तिल का ताड़, राई की पहाड़, गड़ेमुर्दे उखाड़, कैसे कहेंगे? कैसे सहेंगे? सेसमे का पाइन, मस्टर्ड का हिल, डेड बॉडी डिगिंग, ये बात नहीं बनींग! बाकी हम सब समझदार हैं! बोलियां बोलने वाले हमारे लिए गंवार हैं, व्याकरण पंडित है, व्यवहार है! गांव का लहज़ा अछूत है, नागवार है? पड़ा-लिखा तो समझदार है, इस दुनिया का तो बेड़ापार है!

गुनगुन गुण!

आप जितने हैं काफ़ी है, मर्ज को कहिए के उनको माफी है, आप को कम करने की कोशिश, नासमझी है, जाने दीजिए, ये समझना आसान नहीं , गुनगुन, गाने से कुछ कम नहीं,  असल में, गाने की दम है, कितनों की आंखें नम हैं, आपके गुनगुन करते मिज़ाज़ का ये दम है, ये दौर सच भी है और भरम भी, गुज़र जाएगा, फिर किसी दिन बैठ, जी भर गाएँगे, हम इंतज़ार में हैं, आप कब आएंगे? तब तक सब से गुजारिश है, रोज़ ज़रा सा, एक लम्हा बचा, क्या हम सब गुनगुनाएंगे

वक़्त का करतब!

 सब साथ है, तजुर्बों से कहां ज़ुदा जज़्बात हैं, गहराई अच्छी है, गर  याद रहे जमीन, वो भी उतनी ही सच्ची है, समंदर, पेड़, पानी, रोशनी सूरज अलग अलग हैं, पर साथ आकर सार्थक! मुकम्मल!  सोचिए आप, क्या हैं, इंसान, प्राणी, कुदरत, या फक्त वक्त का करतब?