गणतंत्र दिन का ये कैसा भजन है? संविधान भेंट चढ़ रहा ये क्या हवन है? बोलने की आज़ादी सबको मिली है! फिर क्यों बात आज लाठी का मन है? सरहदों के मायने और संविधान के आईने? क्या अहम है और क्या भरम है, अहं है? क्यों सारी बातें किसी का धरम है? क्या हुआ कि आज नफ़रत चरम है?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।