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मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बुरी होली!

शैतान सोच की बोली है, "बुरा न मानो होली है"! मनुवादी बीमार बोली है, "बुरा न मानो होली है"! आतंक की बोली है, "बुरा न मानो होली है"! जबरन, दबंग सोच बोली है, "बुरा न मानो होली है"! बलात्कार की बोली है, "बुरा न मानो होली है"! रंग तमाम सोच #UnHoly है "बुरा न मानो होली है"! सच से आँख-मिचौली है! "बुरा न मानो होली है"? गंगा स्नान की बोली है! "बुरा न मानो होली है"!  "आज सब चलता है," बोल शैतान हाथ फिसला है! किस संस्कृति की बोली है? "बुरा न मानो होली है"!! (अगर सोच में पड़ गए हैं या भावनाएं उछल रही हैं तो ये लेख भी पड़ लीजिए-) https://www.thelallantop.com/tehkhana/meow-how-holi-remains-a-festival-of-licensed-harassment-and-assertion-of-masculinity/amp/

वहाटीज़ अप?

आज आईटी सेल से आपके व्हाट्सअप पर क्या खबर आई? रॉफेल के कागज पर किसी ने पकौड़ी खाई? चाय पर चर्चा जोरदार थी बड़ा रंग लाई, बालाकोट में कितने मरे, अलग अलग गिनती बताई! बेरोज़गारी छप्पर फाड़ कर आसमान चली आई, नौकरी तो बहुत हैं पर नौजवान लेने नहीं आई!!  TV पर पाकिस्तानी हमले से देशभक्ति जाग आई, ऐसे में नौकरी खोजने केवल देशद्रोही जा पाई!! देश के हालात में जबरजस्त तरक्की आई, हर गली कूचे में आज़ाद घूम रही गाय माई!! स्वच्छ भारत का कचरा कम करने को आई, एक तीर से दो शिकार यही कहलाई☺️! गाय की गाय, चाय की चाय!! अपोजिशन के हल्ले से रॉफेल आने देर लगाई, इसलिए रॉफेल के कागज की हवाई जहाज़ उड़ाई! कचहरी में कह दियेन मीलॉर्ड, का जानें कौन चुराई! पब्लिक बुड़वक ये बात इनको कौन समझाई? चौकिदार के चौकड़ीदार सामने आ रही है सच्चाई, पर धर्म के नाम पर आँख पट्टी बांधे वो कैसे हटाईं? मूरख भरोसा कर बैठे के मंदिर वहीं बनाई? राम के नाम के धंधे में बहुते कमाई! पैसा तो छोड़ी, भर भर वोट भी आई!! जो ज्यादा चूँ-चपड़ करे उसकी ले ठुकाई! कतना झूठ बोलेगा, कोई ज़रा बताई?

इरादा-ए-इत्तफाक!!

यूँ की यूँ ही कुछ नहीं होता, इत्तफाक से, एक आग है, जो पलती है, ओ जलती है, आपके एहसास, रवैये में, जज़्बे में, बात में, आपके सवाल, आज़ाद हैं,  आपके कब्ज़े में दम नहीं तोड़ते, दुनिया की ज़ंजीरो में, हरदम तय तस्वीरों में, जो आपको समेटना चाहती हैं, अपने रंग-ढंग और तौर में, आप जुदा हैं, इसलिए गुमशुदा हैं, अपनों में, ढूंढते, हमदिली! (समर्पित उस जज़्बे को जो लड़की होने की सारी चुनौतियों से दो-चार होते, अकेले, अपने सच को तलाशती रहती है)

तमाम नफरत....तमाम!

जो नेक है उसका ध्यान करते हैं, चलिए यूँ नफ़रत तमाम करते हैं!! दोनों तरफ हैं लोग जो मुस्कराते हैं, ऐसे भी क्यों जी हलकान करते हैं! इरादों की जंग है अमनपसंद रहिए! क्यों कम अपनी मुस्कान करते हैं!! जो शिकारी बन गए वो भी शिकार हैं, क्यों उनकी नफरत एहतराम करते हैं! ज़ख्म, जज़बातों की नज़र न आ जाएं, और आईने को अपना मकाम करते हैं! वो तमाम जो बदले की बात करते हैं! सब अपने घर बैठ कर आराम करते हैं!! झूठ खबरों ने आँखों को पर्दा किया है, ग़ुमराह हैं जो, सुना उसे ज्ञान करते हैं!! मिटा दो, ख़त्म करो, विनाश, ये युद्द्घोष ये भक्त खुद को क्यों भगवान करते हैं?

चाल चलन!

यूँ हालात है और नदारत सब सवाल है, कौन चल रहा है और किसकी चाल है? नज़र आता है और सबको मलाल है? "यही होता आया" किसकी मज़ाल है? सबको लगता है के उनका दिल साफ है! नज़र फेर ली है और अपना खून माफ़ है? ताकत सच है कमज़ोर का क्या हक़ है? पैदाइशी बराबरी ये भी एक कमाल है!! भक्ति धर्म है और चौतरफा कचरा कर्म है, चौखट पर सर है और कलयुग काल है? नफ़रत पल रही है ओ शिकारी शिकार हैं, गुस्सा सभी को है और ये भेड़चाल है!! देवघर एक धर्मस्थल श्रद्धालुओं के कचरे से लिप्त धर्मभक्ति, देशभक्ति आज दोनों बेलगाम हैं, गुंडों की टीम है और सियासत कप्तान है!! (देवघर, झारखंड में 10 दिन गुजारे, सवाल दिमाग में आये, वहां धार्मिक टूरिस्ट के फैलाए कचरे से, ये वही लोग हैं जो राम मंदिर चाहते हैं? वही लोग जो स्वच्छ भारत को तत्कालीन सरकार की उपलब्धि मानते हैं। वही लोग अपनी सोच और कर्म से भारत को प्रदूषित तो नहीं कर रहे?)