ज़िक्र होता है के वीरानों में सुबह होती है, मुक़म्मल शहरों में कहां ये जगह होती है? अपने लिए ही जीते हैं आप भी, हम भी, ज़िंदगी में और किस की जगह होती है? तमाम सच्चाइयाँ है समझने को चाहें तो, आइनों में सिमटी पर सारी वज़ह होती है! है सब की आंखों देखी, कौन मुश्किल में है खबरों में आए, तो ही अहमियत होती है? शहर का ट्रैफिक बन गयी है सारी जिंदगी, रुकने ठहरने की और क्या वजह lहोती है? सब को चाहिए एक सरपरस्त दिलासा देता! डरा के रक्खा जिसने उसकी फ़तेह होती है? कितने सवाल हैं जो अब गुनाह बन गए हैं? कोई न पूछे क्यों रातों को सुबह होती है? फांसले इतने बढे के अब आसमां करीब हैं! कहाँ आजकल दिलों में वैसी जगह होती है? वो कोई और दौर थे के जब करिश्मे होते थे? तमाशा है अब ओ करतब पर नज़र होती है! कल मान जाएंगे सब के हम गुमराह थे! आज के क़त्ल की जायज़ वज़ह होती है! हवाएं तमाम इशारों से मायूस करती है, सांस लेते हैं और उसकी चुभन होती है! सफ़र तय है पर रास्ते अभी बने ही नहीं! पूछे कोई 'अज्ञात' कैसे सुखन होती है?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।