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जनवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

मुर्दा बड़ा मस्त है!

कुछ नहीं न होना, बहुत खल रहा है, कुछ ऐसा ये दौर चल रहा है, अपने आराम के बेशरम हो गए हैं, भूला, भुलावा अब छल रहा है। घर जंजीर है, जर जंजीर है, तमाम तामीर जंजीर है, यूं होना ही गुनाह है, और गुनाह पल रहा है। दायरे ख़त्म हैं सारे के सारे, हर हद की जद है, शोर जितना है हर घर वहीं खामोशी बेहद है! कातिल हैं अपने ही, अपनी ही कब्र बने बैठे है, बदल गए हैं उफ़क सारे, बस नाउम्मीदी के सहारे हैं! हंस रहे हैं, मुस्करा रहे हैं, खुद को गंवा रहे हैं, आईने तमाम हैं बाजार में, पैसे बड़े काम आ रहे हैं!!

गलत हिंद ई!

रम पराम पराम, उठे सबके कदाम, एजी ऐसे गीत जाया करो, अराम हेराम है, शराम बेशराम है, एक ही बज़ रंग हैं सब, और बड़े बदरंग हैं, दंग_आ नियत में रम गया है जैसे, सलाम का गला धड़ से कलम है, जयश्री रम गई है गटर की चकाचौंध में, कीचड़ नराम है सेज बनी सम विधान विषराम है,   अराम हेराम है, शराम बेशराम है, भग, वाह वाह हो रही चहुँ और, दंगआराम है,   समाचार व्यभिचार है, सच्चाई भक्त बनी है धूनी रामाए सारे दुष्कराम ही रम गए है कण कण, रम गए हैं, रम पराम पराम उठे सबके कदाम, योद्धा के सब धंधे हैं, बेसराम के बढ़े चंदे हैं डर से सब गंदे हैं, बदरंगी बंदे हैं! रम पराम पराम, उठे सबके कदाम, अजी ऐसे गीत जाया करो!