आज़ की सोच फिर कल की बात करते हैं, गुजरते सच को भला क्यों हालात करते हैं? हदें सारी सिमट गई हैं आज तंग यकीनी में, हमराय न हुए तो कातिल जज़्बात करते हैं! मोहब्बत यूं भी गरीब है तमाम सरहदों से और फिर ये बाजार जो हालात करते हैं! यूं नहीं के इंसानियत बचीं नहीं है कहीं, पर बस अपने ही अपनों से मुलाकात करते हैं! तालीम सारी मुस्तैद है सच सिखाने को, वो शागिर्द कहां जो अब सवालात करते हैं! कातिल हैं मेरे वो जो अब मुंसिफ बने हैं, और कहते हैं क्यों खुद अपनी वकालात करते हैं! फांसले बढ़ रहे हैं दो सिरों के मुसलसल, ताकत वाले बात भी अब बलात् करते हैं! हमदिली की बात अब डिज़ाइन थिंकिंग है, बेचने को बात है, सो ताल्लुकात करते हैं! दीवारें चुनवा दीं हैं रास्तों में किसानों के, सुनने की इल्तजा पर घूंसा–लात करते हैं! [तालीम - education; शागिर्द - student; मुसलसल -continuous; हमदिली- Empathy ; बलात् - by force ; इल्तजा - request]
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।