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इंतज़ार से आज़ादी

इंतज़ार से आज़ादी नजर ठहरी हुई थी पर रुकी नहीं, सामने से दुनिया गुजर गयी,  न जाने कितने सच थे हँसते हुए और हम भी वहां थे वक्त बनने का एहसास कितना हसीं है! नापने की नहीं मेरे पैरों में जो जमीं है  वो बने आसमान जिन्हें तारे जमीं करने हों मेरी कोशिश मिट्टी होने की, मेरी मुश्किल मिट्टी होने में हाथ होने में, हवा खोने में फिर नजर आने की लालसा कहाँ लालच क्यों जमीं   मिल जायूँगा, फिर क्या डर मिल पाऊंगा! ( २० लोगों ने ली हुई ट्रेनिंग बिहार, राजस्थान और महाराष्ट्र में बच्चों तक  पहुँचने के विडियो देख कर हुई दिमाग की हलचल)