इंतज़ार से आज़ादी
पर रुकी नहीं,
सामने से दुनिया गुजर गयी,
न जाने कितने सच थे
हँसते हुए
और हम भी वहां थे
वक्त बनने का एहसास कितना हसीं है!
नापने की नहीं
मेरे पैरों में जो जमीं है
मेरी कोशिश मिट्टी होने की,
मेरी मुश्किल मिट्टी होने में
हाथ होने में, हवा खोने में
लालच क्यों
जमीं
मिल जायूँगा, फिर क्या डर
मिल पाऊंगा!
( २० लोगों ने ली हुई ट्रेनिंग बिहार, राजस्थान और महाराष्ट्र में बच्चों तक पहुँचने के विडियो देख कर हुई दिमाग की हलचल)
अच्छी रचना ,आभार
जवाब देंहटाएं