सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिसाब चालीसी!

चलो जिन्दगी कि गणित बदल दें, उम्र प्यार कि हो, (जितनी बढे उतना अच्छा), दिन कि जगह दूरियॊं का सोचें, (जल्दी गुजर गया तो अच्छा) महीने मुलाकातॊं से बदलें, और साल लोगॊं से जुड़ने पर, जब दिल आये तो वक्त थम जाये और टूटे तो काफ़ुर हो जाये वार मिज़ाज़ से बदलें, प्यार सोमवार, इकरार मंगलवार, यार बुधवार रुठ गुरुवार, मन्नतें शुक्रवार, सुलह शनिवार, रंगीला रविवार, वैसे दिन तो लंबा होता है, क्या हिसाब हो, प्यार में हर दिन एक साल है, महीने लम्हॊं से बने, और हफ़्ते पल पल के हॊं आप इश्क़ में हैं तो समझेंगे, मौसम बदलते देर नहीं लगती, दिल की धड़कनें, घड़ियॊं से नहीं चलती हालात महीनॊं नहीं संभलते, हाथ में हाथ हो, तो युग बदल जायें  मौसम नहीं बदलते, दिल के केलेंडर, किसी फ़ोर्मुले पर नहीं चलते इश्क़ के खेल में गणित फ़ेल है,  और ये मत समझना कि हिसाब में कमज़ोर हैं, दिल में चोर है, या दाढी में तिनका, घड़ियाँ गिनी हैं, पल पल सहेज़ के रखा है, हर लम्हे का हिसाब है, पहली नज़र, खामोश असर, वर्षों सबर, वो हसीन सहर, नज़रॊं से कहर, चार घंटे, चालीस पहर, मुस्कराहटें, घबराहटें, दो पल की खामोशी, एक युग का सन्नाटा