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हिसाब चालीसी!

चलो जिन्दगी कि गणित बदल दें,
उम्र प्यार कि हो, (जितनी बढे उतना अच्छा),
दिन कि जगह दूरियॊं का सोचें, (जल्दी गुजर गया तो अच्छा)
महीने मुलाकातॊं से बदलें,
और साल लोगॊं से जुड़ने पर,
जब दिल आये तो वक्त थम जाये
और टूटे तो काफ़ुर हो जाये
वार मिज़ाज़ से बदलें,
प्यार सोमवार, इकरार मंगलवार, यार बुधवार
रुठ गुरुवार, मन्नतें शुक्रवार, सुलह शनिवार,
रंगीला रविवार,
वैसे दिन तो लंबा होता है, क्या हिसाब हो,
प्यार में हर दिन एक साल है,
महीने लम्हॊं से बने,
और हफ़्ते पल पल के हॊं
आप इश्क़ में हैं तो समझेंगे,
मौसम बदलते देर नहीं लगती,
दिल की धड़कनें, घड़ियॊं से नहीं चलती
हालात महीनॊं नहीं संभलते,
हाथ में हाथ हो, तो युग बदल जायें 

मौसम नहीं बदलते,
दिल के केलेंडर,
किसी फ़ोर्मुले पर नहीं चलते
इश्क़ के खेल में गणित फ़ेल है, 
और ये मत समझना कि
हिसाब में कमज़ोर हैं, दिल में चोर है,
या दाढी में तिनका,
घड़ियाँ गिनी हैं,
पल पल सहेज़ के रखा है,
हर लम्हे का हिसाब है,
पहली नज़र, खामोश असर,
वर्षों सबर, वो हसीन सहर,
नज़रॊं से कहर,
चार घंटे, चालीस पहर,
मुस्कराहटें, घबराहटें,
दो पल की खामोशी,
एक युग का सन्नाटा,
आँखॊं से इशारा, लाठी का सहारा
वो उंगलियॊं का गिनना,
और कोई एक चुनना,
मुशकुर भी, मज़बुर भी,
मंजुर भी, 

दुनिया सर पे उठा ली,
और पैरॊं के नीचे जमीं नहीं,
बस अब कोई कमी नहीं,
गणित इसकी, किसकी
ओह! मैं भुल गया, आप
दो और दो चार करते हैं,
यानी
जिंदगी अचार करते हैं
खट्टा-मीठा, अच्छा है,
हमारे काम आयेगा

हम प्यार करते हैं

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!