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जून, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बातचीत की धुरी, फ़िरकी, चक्कर!

कितनी बातें की हैं  , कुछ दिल ने कुछ दिमाग ने तय की हैं  ,  कितनों तक पहुंची है कोइ बात सोचते सोचते हो गयी रात हो गयी फ़िर वही बात न रास्ते अलग हैं , न संघर्ष मैं जिस जगह पर हुँ , उसका क्या हर्ष पीछे मुड़ कर देखो  ; तो पीछे वाले लोग ही नज़र आयेंगे  ! निरीक्षण में अक्सर निष्कर्ष नज़र आयेंगे  ! निष्कर्ष है भुत का नांच निरीक्षण है सांच को आंच चेहरे के सामने कांच निष्कर्ष है दो और दो पांच तलवे में चुभी फ़ांस हलक में फ़ंसी हड्डी न खत्म होती कबड्डी  , चलो भावनाओं से जुड़ें सुनें , दिल बोलता है , हमेशा इशारा करता है , पर उस से कहां किसी का मन भरता है , हम अपनी सोच में अटके , लगते हैं हर अनुभव को , काटने - बांटने - छांटने उंच - नीच , अच्छा - बुरा , सही - गलत वो सब कुछ जो करे खुद से दुर  , क्या खबर , खुद को है क्या जरुर ? जरूर . . . क्या ?  हवा पानी और ज़रा सी नादानी  , थोड़ी अपनी और थोड़ी उनकी  , फ़िर क्यॊं किसी को इतना पुरा करते हो  , और ज़रा कदम चूका तो हाथ माथे धरते हो ? सब कुछ आसान चाहिये  , रिश्तॊं में