कितनी बातें की हैं , कुछ दिल ने कुछ दिमाग ने तय की हैं , कितनों तक पहुंची है कोइ बात सोचते सोचते हो गयी रात हो गयी फ़िर वही बात न रास्ते अलग हैं , न संघर्ष मैं जिस जगह पर हुँ , उसका क्या हर्ष पीछे मुड़ कर देखो ; तो पीछे वाले लोग ही नज़र आयेंगे ! निरीक्षण में अक्सर निष्कर्ष नज़र आयेंगे ! निष्कर्ष है भुत का नांच निरीक्षण है सांच को आंच चेहरे के सामने कांच निष्कर्ष है दो और दो पांच तलवे में चुभी फ़ांस हलक में फ़ंसी हड्डी न खत्म होती कबड्डी , चलो भावनाओं से जुड़ें सुनें , दिल बोलता है , हमेशा इशारा करता है , पर उस से कहां किसी का मन भरता है , हम अपनी सोच में अटके , लगते हैं हर अनुभव को , काटने - बांटने - छांटने उंच - नीच , अच्छा - बुरा , सही - गलत वो सब कुछ जो करे खुद से दुर , क्या खबर , खुद को है क्या जरुर ? जरूर . . . क्या ? हवा पानी और ज़रा सी नादानी , थोड़ी अपनी और थोड़ी उनकी , फ़िर क्यॊं किसी को इतना पुरा करते हो , और ज़रा कदम चूका तो हाथ माथे धरते हो ? सब कुछ आसान चाहिये , रिश्तॊं में
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।