कितनी
बातें की हैं ,
कुछ
दिल ने कुछ दिमाग ने तय की हैं ,
कितनों
तक पहुंची है कोइ बात
सोचते
सोचते हो गयी रात
हो
गयी फ़िर वही बात
न
रास्ते अलग हैं,
न संघर्ष
मैं
जिस जगह पर हुँ,
उसका क्या
हर्ष
पीछे
मुड़ कर देखो ;
तो
पीछे वाले लोग ही नज़र आयेंगे !
निरीक्षण
है सांच को आंच
चेहरे
के सामने कांच
निष्कर्ष
है दो और दो पांच
तलवे
में चुभी फ़ांस
हलक
में फ़ंसी हड्डी
न
खत्म होती कबड्डी ,
चलो
भावनाओं से जुड़ें
दिल
बोलता है, हमेशा
इशारा
करता है,
पर
उस से कहां किसी का मन भरता
है,
हम
अपनी सोच में अटके,
लगते
हैं हर अनुभव को,
काटने-बांटने-छांटने
उंच-नीच,
अच्छा-बुरा,
सही-गलत
वो
सब कुछ जो करे खुद से दुर ,
क्या
खबर, खुद
को है क्या जरुर?
हवा
पानी और ज़रा सी नादानी ,
थोड़ी
अपनी और थोड़ी उनकी ,
फ़िर
क्यॊं किसी को इतना पुरा करते
हो ,
और
ज़रा कदम चूका तो
हाथ
माथे धरते हो?
सब
कुछ आसान चाहिये ,
रिश्तॊं
में जान चाहिये
बातों
को कान चाहिये
हर
लम्हा ईमान चाहिये,
नज़दीकी,
निश्चितता,
गर्मजोशी,
किस
को नहीं चाहिये ,
ये
वो बात नहीं हैं
कि
आप आज़माइये !
अपने
ही तराज़ु में क्यों तुलते हैं ,
चलिये
कहीं और चलते हैं,
जहाँ
मैं, मैं
हुँ, और
आप, आप,
न
कोई नाप, न
पुरानी छाँप,
न
मैं आप को किसी साँचे में
ड़ालुंगा
न
आप मुझे किसी खांचे में
चाह
तक ठीक है , चाहत भी चलेगी
आखिर,
हम सब
इंसा-पसंद
लोग है,
तो
फ़िर दोनो ही फ़ेरहिस्त ले आयेंगे ,
तुम्हारी
बात ऐसी ___
चाहिये,
बड़ों
का आदर ___ चाहिये
शर्म
को चादर चाहिये
जिम्मेदार
___चाहिये
आपको
सुनना चाहिये
उसको
कहना चाहिये
गले
को गहना चाहिये
चाहिये
चाहिये चाहिये !
अब
क्या करेंगे?
कम,
ज्यादा,
तेरा,
मेरा,
पूरा,
अधूरा,
किया
नहीं, समझा
नहीं,
जानते
नहीं, मानते
नहीं,
बताना
पड़ेगा, जताना
पड़ेगा,
ऐसे-कैसे
छोड़ दें ,
इंसानियत
के नाते हमारा फ़र्ज़ बनता है ,
ढेंचु-ढेंचु-ढेंचु
गधे
-साले!
हम
सब!
अब
शायद बात कुछ आसान हो जाये !
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