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अगस्त, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राम, शमशान और बदलते रस्ते !!

खुद को आज कुछ रुका हुआ पाते हैं, कौन जाने यहां से रास्ते कहां जाते हैं!  मुश्किलों को कंधे पे ले कर रामनाम करते हैं, क्यों आप अपनी दुआओं को शमशान करते हैं! ये अभी अभी की बात है, या पहले कि कोई रात है, अब अजनबी से क्या कहें, ये अजनबी से बात है! उस दौर से गुजरते हैं, कि उसुलों को फ़िज़ूल करते हैं, जिस जमीं पर खड़े हैं कीमत उसीसे वसुल करते हैं! बात पुरानी ही सही, तारीख बदल चुकी है, समझ बारिख है, गुमां है, रस्ते बदल चुकी है ये भी एक पहचान है, खुद से ही अंजान है लिये बोझ कुछ होने का, खालीपन सामान है! उड़ने का जिगर है, क्या पुछें उड़ना किधर है, हवा का रुख एक जाल है, या कोई सवाल हैं? क्यों रस्ते भटकना, सफ़र को हमसफ़र कीजे, जो अक्स यकीं में उस को ही असर कीजे! सच सब तरफ़ मौज़ुद है उसकी क्या तलाश, नज़र होगी आपकी जो दिख रही है लाश!

जो है सो है! हाँ नहीं तो!!!!

क्योँ आसमानी बुलंदी पर नज़र है, गर आपके इरादॊं में जिगर है? क्या इरादे आसमान चाहिये, या बस इसाँ आसान चाहिये? एक काबिल अंदाज़ चाहिये या सर कोई ताज़ चाहिये?  सामने सफ़र है पीछे घर है, काहे को पुकार चाहिये?  तमाम सलाहियतें और खुब कमियां नज़र जरा नज़रअंदाज़ चाहिये युँ ही दुरियाँ कम नहीं‌ होतीं (जमीं आसमान की)‌ पलकें थोड़ी सी नम चाहिये! झोली भरने को नहीं, संभलने को है फ़कीरी में क्यॊं गोदाम चाहिये? जो मिला है वो काफ़ी हो, काहे किसी को राम चाहिये?