अपने ही पैरों खड़े हैं, यूँ नहीं कि किसी से बड़े हैं! अदब है, यूँ नहीं कि आप बड़े हैं, नज़र आता है कि सीधे खड़े हैं! हमसे मत करिये रवायतों का जिक्र चाल चलन को हम चिकने घड़े हैं! कोई साथ ले कर नहीं जाता, गले शायद धूल बन कर पड़े हैं! सच यूँ भी हजम नहीं होता उपर से करेले नीमचढे हैं! एकतरफ़ा आईनों के जंगल में, सब अपने ही रस्तों के बड़े हैं! हमसे नहीं होती ईमारतें उँची, एक बूँद में भी समंदर बड़े हैं! वो सफ़र ही क्या जो खत्म है, इसी जिद्द पर आज भी अड़े हैं! जो पैर है वो ही जूता सर है, हम आदतों के खास बिगड़े हैं!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।