सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कश्मीरियत!

मुस्करा के अपने दर्द बयां करते हैं, यूँ लोग अपनी ज़िंदगी मकाँ करते हैं। खींच ली है जमीं पैर नीचे से, हम हैं के फिर भी सफ़र करते हैं! मुश्किल में मदद की जरूरत पड़ती है, हम मुश्किल में भी, सबकी मदद करते हैं! फौज को फ़ज़ा कर दिया है कश्मीर की, अब ज़ज़्बे से हम ये आबोहवा करते हैं! कश्मीर जग़ह नहीं सिर्फ हमारी वज़ह है, यूँही नहीं ये बात हम खूँ से बयां करते हैं! कश्मीर आइये आपको कश्मीरियत मिलेगी, अपनी मुश्किलों को हम नहीं दुकां करते हैं!

कश्मीर, कश्मीरियत और खामोश सवाल!

कश्मीर, मुस्कराते लोग, हँसते बच्चे, बर्फीले पहाड़, पाक-साफ़ पानी इन्तहां खूबसूरत! कश्मीरियत, जज़्बा         इरादा,         हाथ में हाथ, मुश्किल में साथ, दर्द में डूबे हालात, मुस्कराते हमसे बात, एक सवाल सिर्फ, "आप ही बताएं..." हम क्या बताएं?     

बहन जी!

मैं उम्मीद हूँ ख़त्म कैसे हूँ, कैसे उदास हूँ? मैं उम्मीद हूँ क्यों में हताश हूँ? मैं आवाज़ हूँ, मुझे कहना है, बिकाऊ शोरों से गुज़र बहना है, आपको लगता है विवाद मैं अपवाद हूँ, और सच, ज़ाहिर है, आपको नज़र नहीं, कई सच आपको असर नहीं! मैं इंसा हूँ अंदर बाहर और सामने, आपको दिखता नहीं, आपके पैरों की नीचे ज़मीन, अधर में लटके हैं आप, बिन मेरे साथ, मैं आग हूँ ज़ल रही हूँ, पर राख नहीं, अपनी उम्मीद हूँ, अपनों की, आपकी ख़ाक नहीं! ये ठहाके पुराने हैं, सदियों से, आपके, इरादे , नीयत हम फिर भी अपनी सांस हैं, फिर भी इंसान हैं, आप अब भी भूख -प्यास हैं, रोटी के टुकड़ों से खेलने वाले, आपका नाम इंसान नहीं है, सरकार मुबारक हो!