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बहन जी!

मैं उम्मीद हूँ ख़त्म कैसे हूँ,
कैसे उदास हूँ?
मैं उम्मीद हूँ क्यों में हताश हूँ?
मैं आवाज़ हूँ, मुझे कहना है,
बिकाऊ शोरों से गुज़र बहना है,
आपको लगता है विवाद
मैं अपवाद हूँ, और सच,
ज़ाहिर है, आपको नज़र नहीं,
कई सच आपको असर नहीं!
मैं इंसा हूँ अंदर बाहर और सामने,
आपको दिखता नहीं,
आपके पैरों की नीचे ज़मीन,
अधर में लटके हैं आप,
बिन मेरे साथ,
मैं आग हूँ
ज़ल रही हूँ, पर राख नहीं,
अपनी उम्मीद हूँ,
अपनों की,
आपकी ख़ाक नहीं!
ये ठहाके पुराने हैं,
सदियों से, आपके,
इरादे , नीयत
हम फिर भी अपनी सांस हैं,
फिर भी इंसान हैं,
आप अब भी भूख -प्यास हैं,
रोटी के टुकड़ों से खेलने वाले,
आपका नाम इंसान नहीं है,
सरकार मुबारक हो!

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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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