समंदर और साथ सफ़र, लहर साहिल मुक़म्मल, अधूरे किनारे, हर लम्हा बदलते, रुके हैं पर खत्म होने को... लहरें बहती हुई, पर कहाँ जाने को? और साथ, मुसाफ़िर, बिछड़े, भटके, अधर में अटके, न छत सर है, न लम्हे असर हैं, रास्तों को खुद नहीं पता, वो कहाँ जाएंगे, कैसे कहें उनको के ज़िन्दगी सफर है, बेबसी रहगुज़र है?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।