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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रिफ़्यूज़ी!

समंदर और साथ सफ़र, लहर साहिल मुक़म्मल, अधूरे किनारे, हर लम्हा बदलते, रुके हैं पर खत्म होने को... लहरें बहती हुई, पर कहाँ जाने को? और साथ, मुसाफ़िर, बिछड़े, भटके, अधर में अटके, न छत सर है, न लम्हे असर हैं, रास्तों को खुद नहीं पता, वो कहाँ जाएंगे, कैसे कहें उनको के ज़िन्दगी सफर है, बेबसी रहगुज़र है?

जज़्बाती ज़मीन

 ज़मीन हिल गयी,  पैरों के नीचे की  सच्चाई बदल गयी,  कुछ लम्हा सही,  रगों की नीयत बदल गयी,  कुछ कह रही थी,  या सबर टूटा कि  बरसों से सह रही थी! जमीन पिघल गयी, ज़ज़्बातों की झड़ी, रह गयी अनकही कोई बात कसर है, या कही नहीं अपनी, बरसों का असर है? हिल गयी, पिघल गयी, आज ज़मीन आसमाँ निगल गई! ये कैसी प्यास थी, या बरसों से दबी आस थी, ओ आज बदहवास थी? ख़ामोशी अच्छी है, सिर्फ़ सुनने को, 'कहने को' खामोश क्यों करिए? जब भी, जो भी, दिल कहता है कहिए! जुड़िए अपनी जमीं से, जज़्बाती रहिए, ज़ज़्बात कहिए!

सर्वे सन्तु भारतीय!

यकीन अलग थे, ज़मीं वही थी, ये किसी की चाल थी, या यही चलन है, अब? मैं, मैं क्यों नहीं रह सकता? सिर्फ इसलिए के आप, आप हो? किसी के बेटे, किसी के बाप हो? या सिर्फ एक क़ातिल तहज़ीब की छाँप हो? राम का नाम हो और, फन फैलाये सांप हो? और आप, और आप, आप भी, शरीफ़ हो, ख़ामोश हो, या गाय का दूध पी मदहोश हो? माँ कसम, क्या नशा है? ये कौनसे दर्द की दवा है? या माहौल है, हवा है? मानना है क्योंकि 'सरकार' ने कहा है? यानी, जो नहीं कहा है, आप आज़ाद हो गए, वहशियत के डर से? या इस यकीन से के ऊपर वाले के दरबार में, पीठ थपथपाई जाएगी, आपकी भी बारी आएगी। "प्रभु, आपका नाम ऊंचा किया, इसने सर नीचा किया, जब भीड़ ने जुनैद का तिया-पाँचा किया! शाबाश पुत्र, तुमने राम का नाम किया, तुम्हें स्वर्ग मिलेगा, 5 स्टार चलेगा!"? "और प्रभु, इन्होंने तो आप की लाज बचा ली, इन्होंने इंसानियत से ज्यादा मान आपका किया, पहलू और अख़लाक़ का काम तमाम किया, पूरे समय इनके ओठों पर एक ही नाम था, जय श्रीराम था, वाह, वाह, इन्हें तो प्रभु अपने वाम पक्ष में स्थान दीजिए, इनको यम का नाम दीजिए"