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नवंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अतिका और रज़ाबन्दी!

हमारी दुआ के ज़रा करीब हो गए, हालात ऐसे अजीबोगरीब हो गए! मुल्क के अपने जो ग़रीब हो गए? दुनिया के थोड़े करीब हो गए! मिट्टी इंसानियत की मुबारक़ हो, नए आप के सब दस्तूर हो गए! सरहदें कसूर बनेंगी ये कब सोचा, वो ओर! जो लकीरों के फ़क़ीर हो गए! हार नहीं मानी, ये उनकी परेशानी है, जिद्द तो थी ही, थोड़े हम शरीर हो गए!! हालात-ए-अंजाम के नज़दीक थे, अपने खातिर हम बेपरवा हो गए! मुसीबत बड़ी, फिर भी काम हो गए, एक दूसरे को हम आसान हो गए! शिकन पेशानी के सब खत्म नहीं हैं, फिर भी चेहरे हमारे मुस्कान हो गए!! (Atiqa & Raza are Peace Activist and dear friends from across. They have been through very difficult times last 12 months. They are together and travelling. It is a blessing☺️)

सेल्फ़ी सही!

कान सुनते हैं, आप गुनते नहीं? सोच परोसी वाली आप बुनते नहीं? इरादे बुलंदी के, और आप चुनते नहीं? ये क्या दौर है, आइनों के दुसरीं तरफ कोई और है! उसी की सोच है उसी का ज़ोर है!! उतना ही मानते हैं हम बस उतना ही जानते हैं! बस यही समझ है! खोज़, सर्च हो गई है, एल्गोरिथम का कर्ज हो गई है? जो देखते हैं, वही बारहा नज़र आता है, एक समीकरण, हमसे भेड़-चाल चलवाता है! और ये भी सच है? उंगलियाँ हमारा दिल बनी हैं! छू लेती हैं, बस वही जगह सटीक, जो हुक़्म मेरे आका! अब दिल को पाउडर-क्रीम हमारी 5.3 टचस्क्रीन! क्या ये भी आज़ादी है? अब हम से बेहतर हम को कौन जानेगा, सेल्फ़ी से ही हमें पहचानेगा! सवाल-जवाब, तलाश,  मैं - कौन, क्यों, कैसे? ये सवाल क्या खास? हर लम्हा, हर जगह,  हर मौके, मैं वही हूँ,  सेल्फ़ी सही हूँ!!

सचमुच! काफ़ी बड़ा है?

भारत एक बड़ा देश है....निहायत ही, महज़ आकार में फक्त प्रकार में, सबसे छोटा क्या है? हमारा दिल? या हमारी सोच? बड़ी स्पर्धा है दोनों के बीच, परंपराएं कितनी, बताती हैं एक सोच बड़ी नीच! और सोच की क्या बात है, सोच सती है, अबला है, कमाल की बला है, पैदा हो न हो, तय फैसला है! सोच द्रोपदी का चीर है, दोनों ओर मर्दानगी तस्वीर है! सोच ही समझ है, सच है, राम नाम सत्य, सीता अस्त! दिल की तो मत पूछो इसमें आने को, जाती ऊँच, रंग पूछ, लड़की करो कूच... नेकी? पर पहले पूछ? जात, धर्म? कर्म? कहाँ है मर्म? आंखें खोल, किसी भी शहर, दो-चार कदम चलिए, और मिलिए, हासिओं से (मार्जिन), कचरों के ढेर से  तरक्की की दुसरीं ओर, बसाए हुए, सुलभ शौचालय  और दुर्लभ विद्यालय पर कतार लगाए आपके बर्तन, झाडु-पोंछा से, आभारी! उम्र लंबी है, कभी आऐगी बारी, बस मेहनत करते रहो परिश्रम का फल मीठा है, प्लीज़ डोंट माइंड, ज़रा झूठा है!! आपकी शराफ़त  न ही लुटा है!!

राय-मशवरा?

ताजा खबरों से क्यों बदबू आती हैं? किस तहज़ीब की बात बतलाती है? बद से बदतर हैं, ये हालात, अक्सर हैं! आज सड़क पर थे, कल आपके घर पर हैं? अपने से क्यों दूर हैं, क्यों भेड़चाल मजबूर हैं? सवाल पूछना भूल गए? कही-सुनी के शूर हैं? जानकारी के उस्ताद हैं, किनारों के गोताखोर, जो नज़र में सब सच है, बस उसी का सब शोर! खुद से खामोशी है, या अजनबी मदहोशी? नज़र नही आते कत्ल या नज़रिया बहक गया? बाज़ार है, सामान भी, सच की दुकान भी, ख़रीद रहे हैं सब, ओ बस वही बिक रहा है!! डर का ख़ामोशी, न्यूज़ चैनल के शोर, तिनके डूब रहे हैं, किसके हाथों डोर? दिमाग प्रदूषित है और  सोच कचरा बनी है, न जाने इंसान ने क्या क्या  सच्चाई चुनी है! सूफ़ियत तमाशा बन गयी है, फ़कीरी धंधा बनी है, बाज़ार ख़ुदा हुआ है ओ सच्चाई दुकान है!

ज़िन्दगी ख़ाक की!!

ज़िन्दगी दावत है, किसी को... बग़ावत है किसी की ? आदत है, किसी की मुश्किल, और कोई आसान, काम किसी का, नाम कोई बदनाम, मुफ़्त पहचान सरेआम, अकेले, भीड़ में, दौड़ रोज़ की, होड़, काहे? बेपरवाह, आगाह? अपने सफ़र से, दोस्ती, अजनबी मुसाफ़िर से, चलते रास्ते आपके, भांप के, नाप के किसी और के? किस छोर के? सहारे, या यकीन मंझदारे? सह रहे हैं या बह रहे हैं, ख़ामोश या कह रहे हैं? अपनी बात,  ज़िंदगी ज़ज़्बात, क्या परवा साख की? आखिर ज़िन्दगी ख़ाक की!!

मैं और मेरा सरमाया!

मेरा "मैं" होना, और "मैं" मेरा होना, जो मैं हूँ, पहले से, होते हुए, एक सफर है, सीखे को भुलाने की, जो 'यही होता है' समझने की, उसके आगे जाने की, "जाने दो", जाने दूं? कभी ये सवाल है, सवाल हैं? कभी एहसास, हर लम्हा मैं खुद को सुनती हूँ, गुनती हूँ, बुनती हूँ, कभी मैं हूँ, कभी मैं नहीं, फिर भी, मैं ही हूँ मेरे होने में, पाने में कभी खोने में, पूरी एक दुनिया नज़र आती है, जब मैं,खुद में गहरे जाती हूँ, क्या सच, क्या माया, जो सोचा कहाँ से पाया, फंतासी या सपना आया? क्या है मेरा सरमाया!? किसे ख़बर!? (ये दोस्त निष्ठा की इंग्लिश अभिव्यक्ति का ट्रांस्पोइट्रेशन है, तस्वीरें भी उसी की नज़र और कैमरे से हैं)

मुसाफ़िर, मेहमान, मेज़बान

मुसाफ़िर भी हैं,  मेहमान भी, और हम ही मेज़बान भी! समंदर को देखिए, दो लम्हे साथ, नज़र आएगा बहुत, समझ जाएगी बात!! एक एक बूंद की मेजबानी, अनगिनत जीवन को रवानी,  हवा ओ पानी, कहाँ कोई शिकवा, शिकायत? जब मर्ज़ी, आईए समा जाईए! लहरों के संग संग सफ़र, मंज़िल से बेखबर, चलने पर नज़र,  कहाँ कोई घर,  साथ बहुत कुछ, ओ सब हमसफ़र, वही नज़रिया, वही असर! साहिल के मेहरबान, हर लहर संदेश,  दो पल के मेहमान, सब चल रहा है, या बदल रहा है! हर घड़ी, पंछी को  पूछिए,  या सीप को! रेत- रेत ये विज्ञान! मुसाफ़िर,  मेहमान, मेज़बान अलग अलग हैं? या सच्चाई के अनेक नाम?