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अतिका और रज़ाबन्दी!


हमारी दुआ के ज़रा करीब हो गए,
हालात ऐसे अजीबोगरीब हो गए!

मुल्क के अपने जो ग़रीब हो गए?
दुनिया के थोड़े करीब हो गए!

मिट्टी इंसानियत की मुबारक़ हो,
नए आप के सब दस्तूर हो गए!


सरहदें कसूर बनेंगी ये कब सोचा,
वो ओर! जो लकीरों के फ़क़ीर हो गए!

हार नहीं मानी, ये उनकी परेशानी है,
जिद्द तो थी ही, थोड़े हम शरीर हो गए!!


हालात-ए-अंजाम के नज़दीक थे,
अपने खातिर हम बेपरवा हो गए!

मुसीबत बड़ी, फिर भी काम हो गए,
एक दूसरे को हम आसान हो गए!

शिकन पेशानी के सब खत्म नहीं हैं,
फिर भी चेहरे हमारे मुस्कान हो गए!!
(Atiqa & Raza are Peace Activist and dear friends from across. They have been through very difficult times last 12 months. They are together and travelling. It is a blessing☺️)

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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