दो बच्चे, बुरे या अच्छे? झूठे या सच्चे? आपके या अनाप के? जात के या "छी! दूर हट" क्या उनका गुनाह हुआ? क्यों हिंदू थे? या "वो वाले हिंदू?" वही यार! समंझ जाओ! जिनका कोई कुछ नहीं कर सकता! हां हां! वही अछु... नहीं नहीं दलित! हा हा हा हा हा हा !!! इनका कुछ नहीं हो सकता, ये सुधरेंगे!! (भारत माता की जय सच पर स्वच्छ की विजय) हां!! तो क्या हुआ, दो से कौनसे कम हो जाएंगे, नाली के कीड़े! अरे, उफ ये बदबू, पोट्टी कर दी क्या ये तुम्हारा लाड़ला, करा कर नहीं निकलीं थीं! उफ! जरा गाड़ी रोको (चीईईईईईईईईई!) चलो बदलो इसका डाइपर, (2 मिनिट) हो गया, चलो अरे! ये डाइपर फेंको यहाँ, नहीं है डस्टबिन तो क्या करें! फेंको इधर ही सड़क पर, ड्राइवर चलो! ज़रा ब्लोअर चलाओ, बदबू भर गई! हां ! मैं क्या कह रहा था?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।