"सीखने के सफर में गलतियां क्या होतीं हैं? ...
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फिर आप कहेंगे कि, गलतियाँ क्या होती हैं?
तो, मेरे हिसाब से जब मैं कुछ करूँ
और उसका मुझे बहुत पछतावा ओर
अफसोस हो वो गलती ही लगती है।"
जबाव का बिन बेसब्री इंतज़ार करें,
अपनी सोच को ज़रा कम घुड़सवार करें,
लगाम थामें रहिए अपने अफसोस कि!
आदत नहीं अच्छी, भाषा दोष की,
जितनी अपने में देखेंगे उतनी दूसरों में नज़र आएगी।
आपकी सोच, आपकी बोली, तराजू बन जाएगी!
गलती किस से नहीं होती?
आप क्या खास हैं?
खाते कोई स्पेशल विदेशी घाँस हैं?
गलती हुई है तो सुधार लीजे
(किसी ने रोका है क्या?)
कभी ख़ुद से कभी उनसे माफ़ लीजे!
पछतावा, अफसोस, पछतावा,
कोई समझाए, दे कोई दिलासा
वादे इरादे उमीदें कसमें,
ख़ुद ही अपने जाल में फंस के
कौन सा तीर मार लेंगे?
अगर नहीं पहुंचे जहां जाना है,
तो क्यों बहाना है?
क्यों पछताना है?
लगता है आप वक़्त के धनी हैं,
सोचते रहने की आपसे खूब बनी है!
अगर-मगर, किंतु-परंतु, लेकिन,
ऐसा होना चाहिए, मैंने सोचा,
फिर भी, शायद, हालाँकि!!!
अपने साथ ही चालाकी?
गलतियाँ क्या होती हैं?
गलतियाँ क्यों होती हैं?
गलती चलने में है या रुकने में
रास्ते में है या पहुंचने में,
भटकने में या अटकने में?
लड़ने में है या मुड़ने में?
गलती, अगर जान गए तो?
या अनजान रहे तो?
अगर सुधर सकती है तो क्या?
अगर आगे निकल आये तो?
गलती है,
या वापस जाना पड़े तो?
सोचते रहिए,
पूछते रहिए,
सुनिए, कहिए!
अगर-मगर, किंतु-परंतु, लेकिन,
ऐसा होना चाहिए, मैंने सोचा,
फिर भी, शायद, हालाँकि!
सोचते सुबह की शाम हुई,
नींद कितनी हराम हुई,
मायूसी बड़ी आराम हुई!
कहा-सुना माफ़ करना
भूल-चूक, लेनी-देनी,
गलती हो गई क्या?
जो हमने कुछ कहा?
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