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हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!

हम काफ़िर!

हम काफ़िर हैं झूठे यकीनों के, दीवारों में चुनने के काबिल हैं क्या? अकीदत और इबादत के गैर हैं हम, आपकी दुआओं से खैर हैं क्या? सजदा करें इतनी अना नहीं हममें,  ख़ाक से पूछिए ख़ाकसार है क्या? अपने गुनाहों को गंगा नहीं करते, जो एहसास न हो वो वजन है क्या? "जय श्री" जोश में कत्ल कर दें कोई आप ऐसे कोई अवतार हैं क्या? भक्त भीड़ बन गए हैं तमाशों की, सारे अकेलों की कहीं भीड़ है क्या? हम मुसाफिर हैं तलाश तख़ल्लुस है, ज़िंदगी मज़हब के वास्ते है क्या?

गुनााह कबूल

अपने ही इरादों की हम भूल हैं, जो गुनाह कहिए हमें कबूल हैं! खून उबलता ही नहीं है, चाहे जो, जज़्बात हमारे बड़े नामाकूल हैं! दम तोड़ रहे हैं तमाम सच हरदिन, और हम बस बातों के फिजूल हैं! दर्द सारे के सारे बेअसर हो चले हैं, और कहने को हम बड़े "कूल" हैं! आम कत्ल हैं और ख़ास जेल में, आज़ाद हमारे मध्यमवर्गी उसूल हैं! फर्क पड़ता, भवें तनती ओ सांस तेज, फिर हम पूरे निक्कमेपन के वसूल हैं! आबोहवा में जहर घोलती है दुनिया, और हम 'एक' बदलने में मशगूल हैं!

इस दौर!

लाख़ ढूंढे मिलने वाले नहीं, कितने गिरे हैं कुछ इल्म नहीं! कहने और करने में फर्क जो है, ये फांसले कम होने वाले नहीं! बहुत सर चढ़ाया है तारीखों में, गिरेंगे अब, उतरने वाले नहीं! दुश्मनी जो रास आने लगी है, ये नशे, अब जाने वाले नहीं! जो सामने है वही सारा सच है, ये नया कुछ जानने वाले नहीं! नफरतों ने आबाद किया है, तुम बर्बादी अपनी मानने वाले नहीं! अपने ही हैं जो बहक गए हैं, सब वो अब अपना मानने वाले नहीं! उम्र का तकाज़ा देने वाले सब,  मानते हैं, अब जानने वाले नहीं!