लाख़ ढूंढे मिलने वाले नहीं,
कितने गिरे हैं कुछ इल्म नहीं!
कहने और करने में फर्क जो है,
ये फांसले कम होने वाले नहीं!
बहुत सर चढ़ाया है तारीखों में,
गिरेंगे अब, उतरने वाले नहीं!
दुश्मनी जो रास आने लगी है,
ये नशे, अब जाने वाले नहीं!
जो सामने है वही सारा सच है,
ये नया कुछ जानने वाले नहीं!
नफरतों ने आबाद किया है, तुम
बर्बादी अपनी मानने वाले नहीं!
अपने ही हैं जो बहक गए हैं, सब
वो अब अपना मानने वाले नहीं!
उम्र का तकाज़ा देने वाले सब,
मानते हैं, अब जानने वाले नहीं!
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