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गाज़ा की आवाज़!

 Translation of poem by Ni'ma Hasan from Rafah, Gaza, Palestine (https://www.facebook.com/share/r/17PE9dxxZ6/ ) जब तुम मुझे मेरे डर का पूछते हो, मैं बात करतीं हूं उस कॉफी वाले के मौत की,  मेरी स्कर्ट की जो एक टेंट की छत बन गई! मेरी बिल्ली की, जो तबाह शहर में छूट गई और अब उसकी "म्याऊं" मेरे सर में गूंजती है! मुझे चाहिए एक बड़ा बादल जो बरस न पाए, और एक हवाईजहाज जो टॉफी बरसाए, और रंगीली दीवारें  जहां पर मैं एक बच्चे का चित्र बना सकूं, हाथ फैलाए हंसे-खिलखिलाए ये मेरे टेंट के सपने हैं, और मैं प्यार करती हूं तुमसे, और मुझमें है हिम्मत, इतनी, उन इमारतों पर चढ़ने की जो अब नहीं रहीं,, और अपने सपनों में तुम्हारी आगोश आने की, मैं ये कबूल सकती हूं, अब मैं बेहतर हूं, फिर पूछिए मुझसे मेरे सपनों की बात फिर पूछिए मुझसे मेरे डर की बात! –नी‘मा हसन, रफ़ा, गाज़ा से विस्थापित  नीचे लिखी रचना का अनुवाद When you ask me about my fear I talk about the death of the coffee vendor, And my skirt  That became the roof of a tent I talk about my cat That was left in the gutted city and now meo...

शुन्य का अधूरापन

  चाहना,  न होना,  बन जाना सिफ़र  ये मकाम हो, या सफ़र ? असर न हो, जिक्र न हो, यूँ हो जाए कि कोई, कबर न हो! और इस की कोई  खबर न हो!!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

रास्तों से वास्ते!

  रास्तों से बातें, या बातें करते रास्ते? रास्ते- कहां हो, कहां जा रहे हो,  किसके वास्ते? भाग क्यों रहे हो, जरा आस्ते-आस्ते! बदल रहे हो या बस चल रहे हो? भीड़ में अकेले और अकेलेपन की भीड़? क्यों मुड़ती जा रही है रीढ़? मैं- और तुम कहां चल रहे हो? ढल रहे हो, पिघल रहे हो, खड़े खड़े, या बैठे-बैठे, या लेटे, कहीं जाते नहीं दिखते, फिर क्यों गुम हो रहे हो? नीयत है या नियत? कैसे भरोसा करें तुम्हारा, न कोई ठौर है, न ठिकाना, न कोई आना-जाना रास्ते - हम साथ है, ठहरे को ठहराव, चलते को सर आंखों लेते हैं, एक साथ दोनों काम कर लेते हैं, हम कदम नहीं गिनते, न मुसाफ़िर चुनते, हम हैं ही कहां? हम चलने से बनते हैं, जहां कोई नहीं चलता, वहां रास्ता नहीं मिलता! क्या अकेले होने से  कोई इंसान बनता है? रास्ते - हम साथ है, ठहरे को ठहराव, चलते को सर आंखों लेते हैं, एक साथ दोनों काम कर लेते हैं, हम कदम नहीं गिनते, न मुसाफ़िर चुनते, हम हैं ही कहां? हम चलने से बनते हैं, जहां कोई नहीं चलता, वहां रास्ता नहीं मिलता! क्या अकेले होने से  कोई इंसान बनता है?

उम्दा सफ़र!

  बड़े उम्दा से ये सफ़र रहे हैं, कुछ ऐसे अपने गुज़र रहे हैं! मुश्किल बस एक नज़रिया है, कुछ ऐसे अपने हश्र रहे हैं!! कौन नहीं हैं यहां गुनहगार? पर कहां अपने कोई जिक्र रहे हैं! सब कुछ मुमकिन हैं सुनते हैं, यूं जो दुनिया बदल रहे हैं! शराफत मजहब हुई जाती है, कुछ ऐसे उनके फक्र रहे हैं! उसूल ऐसे की जंग मुमकिन है, पर ऐसे हम कुछ लचर रहे हैं! दुनिया रास नहीं आती फिर भी, कुछ ऐसे अपने बसर रहे हैं! सब हो जायेंगे इंसान एक दिन, पर हम कहां इतना ठहर रहे हैं! कामयाबी की गुलामी नशा है, कुछ ऐसे ही सब बहक रहे हैं! अज्ञात हैं, रिश्ते फिर भी कायम से, कुछ ऐसे अपने असर रहे हैं!

जमूरा जम्हूरियत का!!

चौकीदार - ए जमूरा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - बोलेगा जमूरा - बोलेगा चौकीदार चौकीदार - जो बोलेंगे वो सोचेगा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - तोता बनेगा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - बंदरी बदरंगी बनेगा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - जो भेजेंगे वो पड़ेगा जमूरा - जी चौकीदार...फॉरवर्ड भी करेगा चौकीदार - सवाल पूछेगा, जमूरा - जी चौकीदार सरकार - क्या ?(थप्पड़, घूंसा, लात) सरकार - सवाल पूछेगा  जनता - नहीं सरकार सरकार - सवाल सोचेगा  जनता - नहीं सरकार सरकार - बोल जंग जनता - जंग जंग जंग सरकार - वार  जनता - वार वार वार सरकार - मार डालो  जनता - मार डालो मार डालो!

मुकम्मलियत मुबारक!

हम भी आतंकी हैं हम भी खूंखार हैं, भयंकर हैं हम, हम भूत सर सवार हैं! कातिल हैं हम, वहशी भी अपरंपार हैं, हम ही शैतान हैं, हम कहां खबरदार हैं! हम छप्पन नहीं बस, हम पैंसठ साठ हैं, सत्तर पचहत्तर हैं हम नंबरदार हैं!! बड़े काम के हैं हम जब हम बेकार हैं, बोझ हैं जमीन पर, मिट्टी के गुनहगार हैं! हम ही बंदूक हैं, टैंक हैं, उड़ती मिसाइल हैं, आने वाली पीढ़ी को बड़ी घटिया मिसाल हैं! हम भगवान भी हैं, हम ही अपने निजाम हैं, हम से गलती नहीं होती, निष्कल आवाम हैं!

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!