वक़्त गुज़रा नहीं फिर क्यॊं शाम होने में?
तमाम मुश्किलें मेरे गुमनाम होने में
वो रास्ते चलुं जो गुजरे मेरे खोने में
करवटें अकेली रह गयी कहीं कोने मैं,
उम्र गुजरेगी ये भी वह रात होने मैं
दुरियां बड़ती है कितनी नज़दीक होने में,
खो रहे हैं रिश्ते उम्मीद होने में,
आप भी शामिल हैं मेरे होने में,
खो गये हैं कहीं मेरे होने में,
गुम है हर एक, कुछ और होने में,
जाने क्या मुश्किल अपना होने में
खो रहे हैं रिश्ते उम्मीद होने में,
आप भी शामिल हैं मेरे होने में,
खो गये हैं कहीं मेरे होने में,
गुम है हर एक, कुछ और होने में,
जाने क्या मुश्किल अपना होने में
छुपी सारी रातें दिन के कोनॊं में
थके सपने बैठे-बैठे बिछोनॊं में !!
मैं हुँ मसरुफ़, अपने अधुरे होने में
मोड़ चाहिये रास्ते को सफ़र होने में
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