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बल - बला - बलात्कार!

कौन सा सपना साकार होता है, एक और बला का बलात्कार होता है, चलो बला टली,  एक सबला को अबला किस ने. किस से, किस का, लिया बदला? नयी कोई बात नहीं, सदियॊं का ये सिलसिला, मर्द आखिर है मनचला, जब मन मचला पैर फ़िसला, किसी को कुचला सीटी मारने से लड़की पलट जाती है, थोड़ा छेड़ा तो अमुमन पट जाती है, शर्मा गयी होगी जो रस्ते से हट जाती है, थोड़ा एसिड़(Acid) और निपट जाती है! भीड़ में मौका देख सट जाते हैं, बस के धक्के पर लिपट जाते हैं, हाथ की सफ़ाई है चिमट जाते हैं, अकेले पड़ गये तो सटक जाते हैं  गली में थूका हुआ पान है, घर में रोटी और नान है, बाजार में 'ओये मेरी जान!' है, आखिर गंगा में स्नान है!  एसा क्या उखाड़ दिये, बेटी तीसरी थी सो जिंदा गाड़ दिये, बीबी मेरी है, दो हाथ झाड़ दिये, दुश्मन की, सो कपड़े फ़ाड़ दिये! प्यार में थोड़ी छेड़-छाड़,  थोड़ी जबरदस्ती जायज़ है,  बलात्कारी सभ्यता में,  क्या ये  मान्यता वायज़ है?

मर्द के दर्द!

कौन कहता मर्दों को दर्द नहीं होता , हम बस बयाँ नहीं करते , पैरों के बीच , ... वो . . . मतलब . . . यानि . . . न न ,  दिल में छुपा रखते हैं , खुद ही दारु - दवा करते हैं , थोड़े अंधेरों को हवा करते हैं , पर क्या करें ये खुजली कि बीमारी है , आप तो समझते ही होंगे , ( मतलब देखेते ही होंगे ) क्या करें कंट्रोल ही नहीं होती , और लातों के भूत , हाथों से नहीं मानते , अब आप को समझना चाहिये न . . . सामने क्यों आते हैं , सदियों से यही होता आया है , पेड़ , पहाड़ और औरत , इन पर चढ कर ही हम मर्द होते हैं , ये मत समझिये हमें दर्द नहीं‌ होता , अब हम तो मानते हैं , हमसे कंट्रोल ही नहीं होता , और फ़िर हम भेदभाव नहीं करते , 6 महीने की बच्ची , 60 साल की बूढी , स्वस्थ , सुंदर या अंधी - गुंगी , अमीरी से ढकी या गरीबी से नंगी , नोचते वक्त हम रंग नहीं देखते , और देखना क्या है ,  ज़ाहिर है , प्यार अंधा होता है , और उसी का धंधा होता है , बस सप्लाय कम है , ड़िमांड़ ज्यादा , वैश्वियकरण की नज़र से देखिये समस्या आसान है , भूख है त

मेरी माँ . . . .तेरी माँ की!

हम वो तहज़ीब है जो सीता का राम करते हैं, तेरी माँ की. . . . .बड़े एहसान करते हैं! मेरी बहन की रक्षा की कसम खाई है तेरी बहन की. . . आज़ बारी आयी है! माँ-बहन है, आदर से प्रणाम करते हैं,  ........... किसी और की, चल पतली गली में तेरा काम करते हैं, कहते हैं इश्क़ में हर चीज़ जायज़ है, थोड़ी जबरदस्ती कि तो क्यों शिकायत है? भुख-प्यास माँ से लिपटकर मिटाई है, आदत है बुरी, क्या हुआ जो तु पराई है! बापों से बदसलुकी की आदत आई है, और माँओं ने अपनी खामोशी छुपाई है स्त्री हमारा धन है, पुरुष मन है, जाहिर है, औरत बिकती है और मर्द की मनमानी है! मर्द की छेड़छाड़, उसकी नादानी है, औरत का सड़कों पर होना बेमानी है!

स्त्रीधन

बचपन से हमको सिखाया है,  लड़की हमारी संपत्ति है, और पराया धन, हमारी इज्जत, दुनिया बड़ी बुरी है, मर्दों कि नज़र छुरी है,  चारदिवारी बड़ी है, यही आपकी जिंदगी कि धुरी है, अब ये आपकी किस्मत है अगर आपके भाई-भतिजों या चाचा-ताऊ कि नीयत बुरी है! तसल्ली रखिये, घर की बात घर है, बड़ों की इज्जत-छोटों को प्यार यही है हमारे संस्कार, जो हमें सिखाते हैं, बेटियों का तिरस्कार, पतियों का व्यभिचार माँ लाचार, अनकंड़ीशनल प्यार, कोई बात नहीं बेटा, दिल ही तो है, फ़िर मत करना बलात्कार, हम तुम्हारे लिये ले आयेंगे, अनछुई, छुई-मुई, गोरी-चिट्टी, एक अबला, बॉटल में अचार, खोलो, चखो, खाने में नरम, बिस्तर गरम, घर हमारा मंदिर है दिन में और रात को हरम, परिपक्व है हमारा समाज़, पुरुष-प्रधान है, स्त्री हमारा खर्चा है, (कन्या) दान हैं, जी भर के करते हैं, मर्द कितने महान हैं!