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मई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इश्क सलामत. . . !

चलो इश्क लड़ाएं ,  अच्छा लड़ाई क्यों,  इश्क रहने दो बस  तुम हो, मैं हूँ, साथ है, कुछ बात है तुम अब भी शर्मा जाती हो, मैं अब भी घबरा जाता हूँ फिर क्यों हम अपनी संवेदना से खेल रहें हैं मैं अब भी कम सुनता हूँ, तुम अब भी देर से उठती हो अब भी तुमारी बिरयानी मेरी चाय है, मुझे अब भी सही करवट लेना नहीं आता तुमको भी कहाँ ठीक से सोना आता मैं नहीं होता तो अब भी तुम MISS करती हो मौका मिल जाए तो, मैं भी पास आकर .... खैर छोड़ो तुम अब भी मुझे मर्द समझती हो मैं अब भी दर्द नहीं समझता अगर कुछ नहीं बदला  तो दर्द क्या है, कौन सी चोट है शायद हमारे देखने में खोट है या कोई पुरानी  चोट है और हम मलहम नहीं बन पा रहे कौन से घाव है जो नज़र नहीं आ रहे अरे . . .  कुछ करवटें हैं कुछ सलवटें बनी नहीं कितनी रातें है अपनी जो बिन गुजरे ही रह गयीं सोचता हूँ. . . कैसे हम बीमार हैं कि आपको बुखार है किसका हो इलाज, किसको ये अजार है सोचें तो. . .  कैसी ये अपने बीच ज़ख्मों कि दीवार है इश्क तुमसे है गर तो क्यों जख्मों से प्यार है और तुम. . . तुम ही आराम हो,

आसान काम!

जो मालुम है उस पर यकीन रहने दो! अपने सपनों को तुम हसीन रहने दो!! मुश्किलों को अपनी आसान रहने दो! जब तक मैं हुँ , मेरी जान रहने दो!! कब समझे है आईने अंजान रहने दो! अपनी आँखों में ही अपनी शान रहने दो!! मुझको मुझसे ही समझो , बात आसान रहने दो! मेरी गलतियों को तुम मेहमान रहने दो!! छू कर महसूस करो लगे जो दाम रहने दो! जिंदगी को अपनी छलकता जाम रहने दो !! चोट और भी हों , रस्ते का काम रहने दो ! मुझे अपने छालों का बाम रहने दो !!