उनकी दुआ में जिक्र हमारा था, खुदगर्ज़ जुबां से आमीन निकले! सरहदें जिनको ख़ामी नहीं करती, दोस्ती दिल से ओ दुआ आमीन निकले! अपनों की ये क्या शिकायत है, क्यों अज़ीज़ अजनबी निकले! न कोई गिला न शिकायत कोई, बड़े अपने, सब अजनबी निकले! हमसफ़र सब अजनबी थे, बड़े आसां ये सफर निकले! दिल जीत लिए,बड़े, शातिर मेहमाँ निकले! अज़ीज़ सारे इतेफ़ाक़ निकले दिलों के सब साफ़ निकले
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।