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अज़नबी हमसफ़र Ajnabi Humsafar


हम भी इन्सान वो भी इन्सान
मिले तो सब हमसफ़र निकले


हम भी कोई कम शरीफ़ नहीं,
वो भी बड़े नेक नज़र निकले!


हम गये थे मेहमान बनके
खास बड़े मेज़बान निकले!


अपनी ही ज़ुबां थी सबकी,
अंजान से यूँ पहचान निकले!


सोचा था दोस्ती का हाथ दें
गले मिले ओ गिले-शिकवे निकले!


ज़हन में कई नाप थे अपने
सब अपने तराजु तुले निकले!


अजनबी हम, अज़नबी शहर में
गैर थे सब, जो अपने निकले!

हर कोई मुस्करा के मिला,
गोया हम इतने हसीं निकले!




Hum Bhi Insaan, Vo Bhi Insaan
Mile to Sab Humsafar Nikale!


Hum Bhi Koi Kum Sharif Nahin,
Vo Bhi Bade NekNazar Nikle!


Hum Gaye The Mehmaan Banke
Khaas Bade Mezbaan Nikale!



Apni Hi Zuban Thi Sabki,
Anzan Se Yun Pehchan Nikle!


Socha Tha Dosti ka Haath Den
Gale Mile O Gile-Shikve Nikle!


Zahan Mai Kai Naap The Apne
Sab Apne Tarazu Tule Nikle!


Aznabi Hum, Aznabi Shahar mai
Gair The Sab, Jo Apne Nikle!



Har Koi Muskaraa Ke Mila,
Goya Hum Itne Hansin Nikle!


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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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