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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मारें या बचाएं?

सुना है, मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है, फिर क्यों किसी को जलाने सारा जमाना खड़ा होता है? बुराई पर अच्छाई की जीत? या अपने धर्म, जाति की प्रीत? कभी रावण, कभी पहलू, कभी रोहित, कभी महिषासुर कभी डेल्टा, कभी सुपर्णखा, कभी चुड़ैल, कभी कलमुँही! जिसकी ताकत, उसका सही, दौर कोई हो कहानी वही? शोर, धमाका, आतिश, धुआँ, धुंधला सच, अंधा कुआँ, पहले राम, अब श्री, देव, आसा, रहीम सदगुरु, हो जा शुरू नीम हक़ीम, सब नामचीन! सब मुश्किलों का हल, हर मर्ज के दवा, पालतू ...., खरीदे गवाह, आप क्या यकीन करते हैं? क्या आपके प्रश्न भी चढ़ावा हैं, आपकी भी कोई साध्वी, कोई बाबा हैं? आपके विकल्प, आपके प्रश्न, क्या लंका दहन हैं? आपकी सोच आपके माथे के साथ टिकी है? किसी मंदिर की ड्यौढ़ी पर लाइन में खड़ी है? सवाल खत्म सिर्फ शिकायत है? क्या आपकी मेहनत को मन्नत की आदत है? 101, 1001, सोने का मुकूट, या पानी चढ़ा, आपकी औकात से थोड़ा बड़ा? क्योंकि भक्ति सबूत मांगती है? सोई है अंतरात्मा, देखें कब जागती है?

क्या बात हुई?

कल तो जैसे रात ही नहीं हुई, आपकी हमारी जो बात नहीं हुई! बात करके बोले कि बात नहीं हुई, क्या बोलें, ये तो कोई बात नहीं हुई! ख़ामोश थे दोनों क्या बात करें, पर कैसे कह दें की बात नहीं हुई! सुनना था उनको सो ख़ामोश थे, शिकायत, 'ये तो कोई बात न हुई'! नज़रें बोलती हैं, अंदाज़ बोलते हैं, कौन कहता है कि बात  नहीं हुई! कहने सुनने को कुछ नहीं रहा, कौन बताए ऐसी क्या बात हुई? आपकी हमारी जो मुलाक़ात नहीं हुई, क्या कोई बात है? कोई बात नहीं हुई! भीड़ बन गया है हर कोई हर जग़ह राय अलग है सो कोई बात नहीं हुई! "मन की बात" अब सियासत है, बड़े बेमन से मन की बात हुई!

चट हट फट छपाक - वाराणसी से आवाज़!

शब्दकोश - चट - झापड़; हट - लात; खट- लात, झापड़, मुक्का;  छपाक - एसिड आपके चहरे पर आओ बेटी आओ, तुम्हें भारत सिखाते हैं, चट! लालची मन = लछमन रेखा के पीछे पाँव, अपने कुर्ते हमारे हाथ से दूर रखो राम भी हम रावण भी हम चट! समझ रही हो न? नहीं? चट! तुम ही सीता भी, तुम्हीं शूपर्णखा, क्यों आवाज़ उठाई खामखाँ? चट! तुम्ही 44 %, पत्नी, हर दो मिनिट तुम्हारी छटनी चट! आओ बहन आओ! तुम्हें भारत बताते हैं, छपाक! ये हिम्मत तुम्हारी? बेचारी रहो, बेचारी! छपाक! तुम बोलती हो? शर्म कहाँ गयी? हिम्मत कैसे आ गई? छपाक! अरे, न करती हो? सीता को शूपर्णखा किया? ये लछमन, क्षमा, ये लक्षण ठीक नहीं! छपाक! आओ मां, बहन, बेटी तुम्हें भारत लठियाते हैं, चट, हट, खट, छपाक! वाराणसी, बुरा नसीब! यहाँ लंका भी है और कुल पतित रावण भी चट, हट, खट, छपाक! प्रिये तुमने अपने पापों का घड़ा भरा चट होस्टल के बाहर 6 बजे के बाद चट आवाज़ ऊंची खट शिकायत, शि का य त हट विरोध, मांगे, धरना, राम राम राम चट हट खट छपाक उम्मीद है अब आप औकात में रहेंगी, जात में रहेंगी दाल भात में रहेंगी आँख नीची होगी, और

कारवां की तन्हाई!

कारवां कितने मासूम सफर मोहताज़ हैं,   हिफाज़त के कैसे देखेंगे अंजान ,  आँखों पर पर्दों कि आदत के ! गुलामी के दौर हैं चलो यही जश्न करें , सुनने को कान नहीं हैं, क्या प्रश्न करें? कवायत जारी है , दो कदम चले चलो , ताक में रखो सोच , हाथ बस मले चलो ! लेकर काँरवां चले थे , रह गयी बस रहगुज़र , कसर साथ में रह गयी ,  या साथ का ये असर ! तन्हाई सवाल बचपन के लिये सफ़र करते हैं , कुछ लोग ऐसे हैं ता - उम्र असर करते हैं ! किसको माफ़ करें , कहां मलहम लगायें , नस्ल कौन सी हो , फ़सल कहां उगायें ? जामा पहनते हैं दिखावट का ,  खुद ही खुद को मंजुर नहीं हैं , इश्क़ तो तमाम करते है ,  गोया मोहब्बत का शऊर नही है ! आखिर कब तक हमें इंसां होने का फ़कर होगा , हरकतों पर झुके सर , कब ऐसा जिगर होगा ?

सुबह की दावत!

आहिस्ता आहिस्ता सुबह जागती है, क्या जल्दी, क्यों जिंदगी भगाती है? सुबह खिली है खिलखिला रही है, खुश रहने को आपको दावत है! सूरज खिलता है या की दिन पिघलता है, जलता है इरादा या की हाथ मलता है! सुबह के सच रोज़ बदलते हैं, आप किस रस्ते चलते हैं एक अंगड़ाई और एक सुबह, फांसला किसको कहते हैं? रोशनी उगती है अंधेरों में तो सुबह होती है, जाहिर है हर बात कि खास कोई वज़ह होती है! सुबह से सब के अपने अपने रिश्ते हैं, कुछ तनहा है, कुछ जलते कुछ खिलते हैं! एक सुबह आसमां में है, एक ज़मी पर, गौर कर लीजे आपका गौर किधर है! एक और सुबह सच हो गयी, अब और क्या चाहिए आप को?  अगर ये सुबह आप को मिल जाए, फिर क्यों कोई और अरमान हो? सुबह को शाम कीजे, दिन अपना तमाम कीजे, गुजर रही है ज़िन्दगी मूँह ढक आराम कीजे! हर रोज़ सुबह होती है, हर रोज हम निराश हैं, हर रोज चाँद ज़ाहिर है, फिर क्यों हम उदास हैं!