सुना है, मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है, फिर क्यों किसी को जलाने सारा जमाना खड़ा होता है? बुराई पर अच्छाई की जीत? या अपने धर्म, जाति की प्रीत? कभी रावण, कभी पहलू, कभी रोहित, कभी महिषासुर कभी डेल्टा, कभी सुपर्णखा, कभी चुड़ैल, कभी कलमुँही! जिसकी ताकत, उसका सही, दौर कोई हो कहानी वही? शोर, धमाका, आतिश, धुआँ, धुंधला सच, अंधा कुआँ, पहले राम, अब श्री, देव, आसा, रहीम सदगुरु, हो जा शुरू नीम हक़ीम, सब नामचीन! सब मुश्किलों का हल, हर मर्ज के दवा, पालतू ...., खरीदे गवाह, आप क्या यकीन करते हैं? क्या आपके प्रश्न भी चढ़ावा हैं, आपकी भी कोई साध्वी, कोई बाबा हैं? आपके विकल्प, आपके प्रश्न, क्या लंका दहन हैं? आपकी सोच आपके माथे के साथ टिकी है? किसी मंदिर की ड्यौढ़ी पर लाइन में खड़ी है? सवाल खत्म सिर्फ शिकायत है? क्या आपकी मेहनत को मन्नत की आदत है? 101, 1001, सोने का मुकूट, या पानी चढ़ा, आपकी औकात से थोड़ा बड़ा? क्योंकि भक्ति सबूत मांगती है? सोई है अंतरात्मा, देखें कब जागती है?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।