अपने भी हैं और इंसान भी, पहचान इतनी काफ़ी है, हाथ बढ़ाने को, कदम मिलाने को, पर ऐसा कहाँ होता है, फिर कहते हो ये देश है, शैतान का एक भेष है, दर्द दर्द नहीं होता, आँसू आँसू नहीं, पस्त है सब इंसानियत, तराजुओं के सामने! 'अपने' ख़ास होते हैं, दबे कुचले टूटे, इंसानियत की दरारों से लीक हुए, चमत्कार के प्राण नहीं छूटे, पूरे बदन पर शिकन लिए, हम सिर्फ आज नहीं हैं सदियों का कच्चा चिट्ठा हैं, हिम्मत किसमें जो पढ़ ले? "जय भीम" ये पुकार है, के चीख, अज़ान है के कोई पहचान? चाय पर बात है, या बिन शर्त साथ है? एक टॉर्च है, बैटरी की तलाश में, जुड़िए, आप रोशनी हैं! "जय भीम" ये दर्द भी है, खुशी भी, आँसू भी, उल्लास भी, ये एक सपना है, एक कौम का, एक कौम जो इंसान होती, अगर कोई जात, कोई रंग से मानवता हैवान न होती! "जय भीम" एक सवाल है, पूछें खुद से? अपनी बुनियाद से? अपनी हैसियत से? अपनी किस्मत से? अपनी अस्मत से? आपने कमाई है? या हाथों हाथ आई है? जय भारत बोल के देखिए? दो चार आवाज़ साथ देंगी, भीड़ में ज़ज्बात देंगी, दो पल और फिर अप
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।