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अक्तूबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पुकार लो हम अनेक हैं!

अपने भी हैं और इंसान भी, पहचान इतनी काफ़ी है, हाथ बढ़ाने को, कदम मिलाने को, पर ऐसा कहाँ होता है, फिर कहते हो ये देश है, शैतान का एक भेष है, दर्द दर्द नहीं होता, आँसू  आँसू नहीं, पस्त है सब इंसानियत, तराजुओं के सामने! 'अपने' ख़ास होते हैं, दबे कुचले टूटे, इंसानियत की दरारों से लीक हुए, चमत्कार के प्राण नहीं छूटे, पूरे बदन पर शिकन लिए, हम सिर्फ आज नहीं हैं सदियों का कच्चा चिट्ठा हैं, हिम्मत किसमें जो पढ़ ले? "जय भीम" ये पुकार है, के चीख, अज़ान है के कोई पहचान? चाय पर बात है, या बिन शर्त साथ है? एक टॉर्च है, बैटरी की तलाश में, जुड़िए, आप रोशनी हैं! "जय भीम" ये दर्द भी है, खुशी भी, आँसू भी, उल्लास भी, ये एक सपना है, एक कौम का, एक कौम जो इंसान होती, अगर कोई जात, कोई रंग से मानवता हैवान न होती! "जय भीम" एक सवाल है, पूछें खुद से? अपनी बुनियाद से? अपनी हैसियत से? अपनी किस्मत से? अपनी अस्मत से? आपने कमाई है? या हाथों हाथ आई है? जय भारत बोल के देखिए? दो चार आवाज़ साथ देंगी, भीड़ में ज़ज्बात देंगी, दो पल और फिर अप

#MeToo

अपने लिखें #MeToo तो दर्द होता है, कुछ की आँखे खुली हैं, भट्टा सी? कहाँ रहते हैं मर्द दुनिया के? अपनों के साथ रहते रहते भूल जाते हैं, सब, अपने गरेबां को, उन हाथों को जो मचलते हैं, थे? जब आप मौका थे, और आपके हाथ, कंधे, कोहनी चौका? भीड़ में, आपकी आँखें झांक रही थीं, उपर से, और ताक रही थी, शर्म को बेशर्मी से, क्या करें फ़ुर्सत ही नहीं मिलती, ज़ेब की गरमी से, अपने हाथ कब तक होंगे जगन्नाथ? रगड़ दो कहीं हाथ, हो गयी पूरी 'मन की बात' और खुजली भी कम, अगर आप सचमुच के, दिल के दर्द वाले मर्द हैं, तो लिखिए #MeToo अगर आप के भी हाथ कभी सटे हैं, भीड में आप भी कभी, जाने-अंजाने एक धक्के में बहे हैं, और नर्म-मुलायम कुछ तो छुए हैं? लिखिए #MeToo अगर, आपके भी ऐसे जिगरी यार हैं, जिनके सड़कछांप प्यार हैं, जिनके हाथ की सफ़ाई के किस्से मशहूर हैं, उनकी हिम्मत की आप दाद देते हैं, और थोड़ा शर्माकर उनसे वो तस्वीरों वाली किताब उधार लेते हैं? चिंता नहीं होती आपको, क्योंकि आपकी बहन उनकी भी बहन है! लिखिए #MeToo अगर आपने हज़ारों बार, छेड़छाड़, एसिड, दबोचने, नोंचने, जबरन पकड़ने, मसलने, बलात्कार की खबरें पड़ी हैं,

मत करवा चौथ!

कैसे मर्द होंगे ...ना! अपनी उमर को लंबी करने को औरत को भूखा करते हैं, बाज़ार में मुँह मारते हैं, और घर उनको प्यासा रखते हैं? गली के कुत्ते, चारदीवार के अंदर हुंकार भरते हैं, कस के दो मारते हैं, गुस्सा है तो क्या प्यार भी करते हैं! कैसे हम फ़्यूचर तैयार करते हैं? कैसा? बराबरी से इंकार है? बेटी से प्यार है पर उसकी मर्ज़ी बेकार है, होन्र किलिंग हमारा सांस्कृतिक व्यव्हार है?

करवा चौथ!

दुनिया में औरतें कम हैं, और वो मरती भी जलदी हैं? औरत में ताकत कम होती है, कम उम्र मे लड़कियाँ ज्यादा मरती हैं, फ़िर भी वो ही भूखी प्यासी हैं, लंबी आयू वालों के लिए उपवासी हैं? इससे क्या निष्कर्ष निकालें ? औरत मूरख है? नितांत!निसंदेह! निश्चित्त! और मर्द? कमीना? गैर-जिम्मेदार?  असंवेदनशील? तंग सोच? डरपोक? लालची? और चुँकि औरत मूरख है वो या मान बैठी है कि किस्मत में यही लिखा है? इनसे तो होगा नहीं, मुझे ही कुछ करना होगा! उनकी उम्र लंबी हो या नहीं, मुझे शायद इस नरक से जळी छुट्टी मिले! इल्लत कटे!

करवा...कैसे नहीं करबा?

शान है, अभिमान है, इतिहास गौरव और सम्प्रदाय महान है? औरत जननी भी है, और वही बदनाम भी, सीता, राम से महान है, वरना गले न उतरता पान है, द्रोपदी को पाँच से आंच नहीं, सौ से उसकी जाँच है? मतलब जब तक घर की बात है औरत, गद्दे के उपर की बस एक चादर है, पर घर के बाहर हाथ मत लगाना, गुस्सा है या झूठे ज़ज्बात हैं? जयललिता, हो माया हो, या राबरी, सब पर औरत होने का तंज है गंजे, तोंदू, छप्पनी, व्यसनी, मर्दों का कुछ नहीं, सब को भरोसा है, क्रवाचौथ की दुआ पे नहीं, करवाचौथ की सत्ता पर, कि ये एक निशानी है, दुनिया वही पुरानी है, तरक्की, आज़ादी, बराबरी ये बात सब बेमानी है! आखिर झुक कर पैरों आनी है, "अपनी मर्ज़ी से", करती हैं मर्ज़ी के दर्ज़ी कहते हैं! वोही मर्ज़ी, जो उन्हें जलाती है? मारती फ़िर फ़ुसलाती है? सड़क पर बेचारा करती है? और समाज मे लाचारा! गर्भ में नागवारा करती है? शादी के बाद जिसकी 'न' का वूज़ूद नहीं, उसकी "हां" क्या है? मजबूरी गवाह नहीं है, जीहुज़ूरी करिये चाँद के ज़रिये हर पतिता को पति मुबारक हों!