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पुकार लो हम अनेक हैं!

अपने भी हैं और इंसान भी,
पहचान इतनी काफ़ी है,
हाथ बढ़ाने को, कदम मिलाने को,
पर ऐसा कहाँ होता है,
फिर कहते हो ये देश है,
शैतान का एक भेष है,
दर्द दर्द नहीं होता,
आँसू  आँसू नहीं,
पस्त है सब इंसानियत,
तराजुओं के सामने!

'अपने' ख़ास होते हैं,
दबे कुचले टूटे,
इंसानियत की दरारों से लीक हुए,
चमत्कार के प्राण नहीं छूटे,
पूरे बदन पर शिकन लिए,
हम सिर्फ आज नहीं हैं
सदियों का कच्चा चिट्ठा हैं,
हिम्मत किसमें जो पढ़ ले?

"जय भीम"
ये पुकार है, के चीख,
अज़ान है के कोई पहचान?
चाय पर बात है,
या बिन शर्त साथ है?
एक टॉर्च है, बैटरी की तलाश में,
जुड़िए, आप रोशनी हैं!

"जय भीम" ये दर्द भी है,
खुशी भी,
आँसू भी, उल्लास भी,
ये एक सपना है,
एक कौम का,
एक कौम जो इंसान होती,
अगर कोई जात, कोई रंग से
मानवता हैवान न होती!

"जय भीम" एक सवाल है,
पूछें खुद से?
अपनी बुनियाद से?
अपनी हैसियत से?
अपनी किस्मत से?
अपनी अस्मत से?
आपने कमाई है?
या हाथों हाथ आई है?

जय भारत बोल के देखिए?
दो चार आवाज़ साथ देंगी,
भीड़ में ज़ज्बात देंगी,
दो पल और फिर
अपने रास्ते आप!
ये शोर भी है, और
इस दौर में लाठी का जोर भी,
दाढ़ी का तिनका है,
बात मन का है!

आज सुबह सुबह दोस्त गुरिन्दर आज़ाद की दीवार पर (फ़ेसबुक वाली) ये अनुभव पढा, ऐसा लगा की भावनाओं की नाव में हिचकौले खा रहा हूँ।


समंदर दर्द के हैं, 
पर लहरों में‌ खुशी समाई है, 
बाँटने वाली, 
हमारी आपकी जैसी नहीं, 
वज़ह ढुंढकर छांटने वाली!
इसको हिम्मत कहें या क्या?

"जय भीम" 
गुस्ताखी माफ़ हो!

'घर की आर्थिक स्थिती ठीक ना होने की वजाह से जब में कुछ 15 साल पेहले 10 वी क्लास में था तब से काम करना शुरू किया था यह उस साल की बात है

फैमिली ने लोहे कै व्यापार में इतना नुक़सान किया था की बर्बाद हो गए थे !
जैसे तैसे कर कै plastic recycle करने का काम शुरू कर दिया था पर बहोत बार plastic waste खरीदने कै लिये बड़े छोटे शहेर घुमना पड़ता था
एक बार चाचा जो व्यापार में बहोत अनुभवी थे आये घर तब चाचा ने पुछा की सुरत से कौन waste भर कै लाया है तोह पापा ने बताया की जीतु गया था
चाचा ने तब बुलाया और सामझाया की देखो अगर कहीं बाहर कै शहर में फस जाओ या किसी भी तरह की भारी मुश्किल पड जाए और जब कुछ भी समझ ना आ रहा हो तब सबसे पेहले उस शेहैर में पता करना की दलित बस्ती कहाँ पर है और वहां पहोंच जाना! कुछ ना कुछ रास्ता निकल आयेगा
और अगर रात को कहीं फस जाओ और hotel कै पैसे ना हो बटवा चोरी हो जाए तोह किसी हरीजन्न वास चले जाना, खाना और रहने का बिस्तर मिल जायेगा !

और अगर छोटा गाँव होगा तोह ध्यान रखना दलित बस्ती गाँव कै बाहर होगी ..दिक्कत होगी तोह पहोंच जाना पता कर कै

आज तक कभी भूला नहीं हूँ वोह बात

ज़ितनी बार बाहर travel karta हूँ अक्सर याद आ जाती हैं वोह बात
क्योंकी वही शायद पेहला lesson था लाइफ का इंडिअन casteism पे मेरे लिये

आज भी कोई भी शेहेर जाता हूँ Dr ambedkar का पूतला देख कर मन बोल देता हैं यहीं कहीं होंगे मेरे अपने लोग

ज़रुरत पडेगी तोह यहीं वापिस आ जाऊँगा

अभी आँधर प्रदेश कै छोटे से गाँव में हेल्प चाहिए थी तेलेगु भाषा तोह आती नहीं थी पर ambedkar साहेब कै पुतले कै पास पता किया और जय भीम बोला और बात की तोह ले गए लोग अपने मोहल्ले में

पचिस लोग आ गए और बात करने लगे और बोले अरे कोई दिक्कत होगी तोह कल भी वापिस आ जाना' - Makwana Jitendra

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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