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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अरे!बाबा और 40 रेप!

एक समय की बात है, एक देश में रेप रहता था, कभी कभी, दबे पाँव, चुपके से, अंधेरे में, मौका ताड़ कर वो हो जाया करता था, उसको लोगों ने अलग अलग नाम दिए, कभी चीर हरण कहा, कभी गुरु का प्रसाद कभी बनवास, सब को लगा,  चलो कभी कभी हो जाता है, जाने दो! रेप ने भी बड़ी मेहनत की, उसने इज़्ज़त के धंदे में पैसे लगा दिए, बस फिर क्या था, बाज़ार गर्म होने लगा, लड़ाइयों में लोग रेप को मिसाइल बना लिए, रेप को फ़िर समझ आया, ताक़त के खेल में उसका भविष्य है, और वो जान गया कि मर्द सामाजिक विज्ञान का फेल है! बस उसने मर्दानगी के साथ MOU साइन कर लिया जब कभी किसी को कम पड़े, बस रेप से वो और मजबूत मर्द बने! बस फिर क्या था, घर घर में, गाँव शहर में, धर्म जात, अमीर गरीब, हर जगह रेप का बोलबाला हुआ, मरदानगी का ये ख़ास निवाला हुआ। बस में, हस्पताल में, चॉल में मॉल में, जेल में जंगल में, बालिका मंगल में.... रेप सर्वशक्तिमान, सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी, सर्वभूत है, यानी रेप हमारे नए भगवान हैं इनके सामने बच्ची-माता सब 'सामान' हैं, क्षमा कीजिए!! 'समान' हैं चलिए रेप

ज़ाहिर बात!

हमसे ही हमारी बात करते हैं, हम भी उनसे ये शिकायत करते हैं! हम नहीं जज़्बात ज़ाहिर करते, वो हमसे यही हिदायत करते हैं! नींद ही ऐसी के बिछड़ जाते हैं, और वो सपनों की बात करते हैं! काम, नाम, आराम सब साथ है, झग़डे, तो हम मशवरात करते हैं! लंबा सफर है, हो चला और बाकी हम कहां मंज़िल की बात करते हैं! अकेले भी दोनों अच्छे खासे हैं! साथ में तो हम कमालात करते हैं!! अरसा हुआ अब सारे एब ज़ाहिर, उम्मीद से रोज़ मुलाक़ात करते हैं! एक हैं पर एक जैसे नहीं, फ़र्क, हमें समझदार करते हैं

मोहब्बत!

मोहब्बत क्यों ये मुश्किल काम है? पहलू में उनके सुकूँ, आराम है! क्यों दुनिया में आशिकी बदनाम है? उनकी शिकायत, ये जरूरी काम है! फिक्र है मेरी ये उनका काम है, ये समझ लेना सफर का नाम है! सब शिकायत है मेरी ख़ामोशी से चुप हैं हम और खासे बदनाम हैं! नज़र जब भी नज़रिया बन जाए, समझ लीजे किसी का काम तमाम है! ज़िंदगी जी रही है ख़ूब दोनों को, हम हैं साकी और वो जाम है! मोहब्बत गहरी पहचान है, सुबह मेरी ओ उनकी शाम है!

अनगिनत सच!

आज ये हाल है, बादल पूछ रहे हैं, आपका क्या सवाल है? क्या काया है, क्या माया है? हर लम्हा सौ का सवाया है! किस को बनना बोलें, किस को बिगड़ना? अनगिनत सच, एक साथ,  कोई किसी से भिड़ता नहीं है, न कोई चिढ़ता है! सब जानते हैं,  खुद से कोई कुछ नहीं है, जमीं से आसमाँ बनता है, पहाड़ से बादल, पेड़ से हवा, कौन सौ, कौन सवा, कीजिए "मैं" को हवा, पल बनिए, लम्हा चलिए, मर्ज़ी उस रास्ते निकलिए, जो है बस अभी है, या मौका फिर कहाँ, कभी है! आज़ाद हो जाइए, आबाद हो जाइए! Swati साथ at The Chirping Orchard Honestly in Mukteshwar.

पारस्परिकता!

ये भी एक सफ़र है, ज़िंदगी असर है, आपकी नज़र में नहीं, इन रास्तों की, कहाँ आपको ख़बर है? आप समय से चलते हैं, लम्हे, पल,  दिन महीने साल, कामयाबी मलाल! हम चलते हैं, वक़्त बदलने को, हम नापते नहीं, भांपते हैं! गलतफहमी है, मौसम हमें नहीं बदलते, हम साथ चलते हैं, एक - दूजे से ढलते हैं, मिट्टी भी हम, बादल भी, हम ही पहाड़ भी, नदी, नाला, तालाब भी, कोई छोटा-बड़ा नहीं! ये आपका नज़रिया है, नज़र नहीं, सच आपको! आप दौर में अटके हैं, नई चीजों से भटके हैं, कपड़े भी बदल लिए तो सोचें आप हटके हैं! निरी मूरखता, कोई भी हट के नहीं,  आप भी जानते हैं, सच में आप गोबर हैं! बुरा लग गया? यही आपकी समस्या है, दिखे सुने में फंसे हैं, एक दूजे पे हंसे हैं, नफ़रत, मोहब्बत, अच्छे-बुरे, ज्यादा-कम, सही-गलत? तराजू के बंदर हैं आप! एक पल स्थिर नहीं! ऊंच-नीच के खेल खेलिए! हम देख रहे हैं,  अपनी जगह, काट दीजिए, छाँट दीजिए, हम फिर भी वही हैं, न गलत हैं न सही, आपसी, एक और अनेक, एक साथ, पारस्परिक, और आत्मनिर्भर भी? समझ जाएंगे जिस दिन, उस दिन आप  हम होंगे!

रास्ते अनकहे!

रास्ते, चलते हुए, यहां-वहां जहां-तहां हर ओर से निकलते हुए, हर लम्हा, एक एक पल हमसफ़र बनने तैयार, आप कहाँ अकेले हैं? सफ़र में? "ट्रस्ट द प्रोसेस" रास्ते किसी को रोकते नहीं, कभी टोकते नहीं, 'नज़र नहीं आते?' आप कदम क्यों नहीं उठाते, फिर कहिए, क्यों? मेरे पैरों के नीचे नहीं आते? क्यों अपने शक आज़माते हैं? शक नए रास्तों से घबराते हैं! अपने कदमों को अपना यकीन कीजे, आसमाँ-अरमान को जमीन कीजे, मुमकिन? .....सफ़र में Swati साथ☺️

सुबह अनकही!

एक सुबह देखी, जागती, भागती, थकी, कहीं आज़ाद, कहीं बोझे से लदी, उम्मीदें और आस लिए, कहीं भूख और आस लिए, कहीं बनती, सँवरती, जोश और होश लिए, कहीं टूटी, बिखरती, हताश ओ रोष लिए, कहीं खुली, कहीं बंधी लड़खड़ाती कहीं सधी, असीमित विस्तार, कहीं मुट्ठी में लाचार, मुमकिन! न? कहाँ आपकी नजर है? क्या आप पर असर है? क्या आपकी कमाई है? क्या सोच चुन आई है? आपकी नज़र, आपका फैसला है? या ज़हन में, चार गूंजते शोर का घोंसला है? क्या आपके सवाल ज़िंदा हैं? या आप अपनी कोशिशों के शर्मिंदा हैं? आप सुबोह को सुन रहे हैं? या फैंसले आपको चुन रहे हैं? "चार नज़र, चौबीस डगर, मुश्किल हर आसान, ता ऊपर आसमान है, ले तू भी कुछ ठान"