एक समय की बात है, एक देश में रेप रहता था, कभी कभी, दबे पाँव, चुपके से, अंधेरे में, मौका ताड़ कर वो हो जाया करता था, उसको लोगों ने अलग अलग नाम दिए, कभी चीर हरण कहा, कभी गुरु का प्रसाद कभी बनवास, सब को लगा, चलो कभी कभी हो जाता है, जाने दो! रेप ने भी बड़ी मेहनत की, उसने इज़्ज़त के धंदे में पैसे लगा दिए, बस फिर क्या था, बाज़ार गर्म होने लगा, लड़ाइयों में लोग रेप को मिसाइल बना लिए, रेप को फ़िर समझ आया, ताक़त के खेल में उसका भविष्य है, और वो जान गया कि मर्द सामाजिक विज्ञान का फेल है! बस उसने मर्दानगी के साथ MOU साइन कर लिया जब कभी किसी को कम पड़े, बस रेप से वो और मजबूत मर्द बने! बस फिर क्या था, घर घर में, गाँव शहर में, धर्म जात, अमीर गरीब, हर जगह रेप का बोलबाला हुआ, मरदानगी का ये ख़ास निवाला हुआ। बस में, हस्पताल में, चॉल में मॉल में, जेल में जंगल में, बालिका मंगल में.... रेप सर्वशक्तिमान, सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी, सर्वभूत है, यानी रेप हमारे नए भगवान हैं इनके सामने बच्ची-माता सब 'सामान' हैं, क्षमा कीजिए!! 'समान' हैं चलिए रेप
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।