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सुबह अनकही!



एक सुबह देखी,
जागती, भागती, थकी,
कहीं आज़ाद,
कहीं बोझे से लदी,
उम्मीदें और आस लिए,
कहीं भूख और आस लिए,
कहीं बनती, सँवरती,
जोश और होश लिए,

कहीं टूटी, बिखरती,
हताश ओ रोष लिए,
कहीं खुली, कहीं बंधी
लड़खड़ाती कहीं सधी,
असीमित विस्तार,
कहीं मुट्ठी में लाचार,
मुमकिन! न?
कहाँ आपकी नजर है?
क्या आप पर असर है?
क्या आपकी कमाई है?
क्या सोच चुन आई है?
आपकी नज़र, आपका फैसला है?
या ज़हन में,

चार गूंजते शोर का घोंसला है?
क्या आपके सवाल ज़िंदा हैं?
या आप अपनी कोशिशों के शर्मिंदा हैं?
आप सुबोह को सुन रहे हैं?
या फैंसले आपको चुन रहे हैं?
"चार नज़र, चौबीस डगर,
मुश्किल हर आसान,
ता ऊपर आसमान है,
ले तू भी कुछ ठान"


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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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