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सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रॉफेल!

सपनों के पंख होते हैं, अक्सर, और कुछ सपनों को लड़ाकू विमान लगते हैं, एयर फोर्स का जज़्बा जाए लेने तेल! रॉफेल! ज़िंदगी आपको कई बार धूल चटाएगी, हिम्मत आपको वापस पैरों खड़ा कराएगी, हिम्मत नहीं तो रिश्वत काम आएगी, हमारा लालच है बेमेल! रॉफेल! सबके साथ, सबका विकास, पर पहले ज़रा मेरे मन की बात, करोड़ों के मेरे ज़ज़्बात! निकालें जनता का तेल, रॉफेल देशभक्ति, राष्ट्रगान, मधुर वाणी, पर सिक्कों की खनखनाहट का कहाँ सानी, अडानी, अडानी, अम्बानी अम्बानी, सुर और ताल का क्या मेल, रॉफेल! चाय की केतली, साथी जेटली, शाह की शय, हमें किसका भय, कितने झूठ चला दिए सच की जगह! ऐसा हमारा खेल रॉफेल

आसान रिश्ते!

यूँ आज उनसे मुलाकात हुई, चाह तो बहुत थी पर कहाँ कोई बात हुई, वो डर गए, हम भी थोड़ा सहम गए, पर इरादा उनका भी बुरा नहीं था, हम भी नेकनीयत ले कर रुके रहे, कुछ लम्हे साथ गुज़ारे, उसने हमको देखा, हम भी खूब निहारे, नज़र मिली पर बात कुछ नहीं चली, कुछ हमने समझा, कुछ उसने भी सोच लिया, बस ये मुलाकात, मुलाक़ात ही रही, जो अधूरी थी वो ही पूरी बात रही, रिश्ता यूँ भी होता है, क्या मिला, क्या बना, कौनसा रास्ता,  इस सब से नहीं वास्ता! बस मैं मैं रहा, वो वो रहा, वो अपनी दुनिया में, मैं अपने रास्ते!!

कहां जाईए?

कहाँ जाइए? पैरों ज़मीन है, सर आसमान, छत आसरा है, चारदीवारी सहारा, फिर शिकायत क्या, डर क्यों, हर लम्हा बदल रहा है, क्योंकि हवा बह रही है, रगों में खून चल रहा है, मायने हैं ज़िन्दगी के कहीं न कहीं, कुछ न कुछ बदल रहा है! रुकना, ठहरना, स्थिरता किस लिए? के आप समझ पाएं...जाएं चलना ही नियत है, नीयती अच्छा हो आप बनाएं यही नीयत भी! दुनिया चल रही है, एक एक पल, आप रुक कर, कहाँ जाईए? चलिए बताइए? कहाँ जाईए?

मन की घात!

सवाल पूछना, जेल है, नए संविधान के खेल हैं!! अधिकारों की बात गुनाह है, संस्कारी गुंडों को पनाह है!! वक़ालत अपराधियों की करिए! मासूमों के कान रामनाम धरिए!! मोदी, अंबानी, अडानी, सत्य वाणी! आदिवासी, दलित इनका खून पानी!! पिछड़ा, कमज़ोर है तो घुटनों के बल हो, जाति-वर्ग के बीच में कैसे दल-बदल हो!! अम्बेडकर, मार्क्स, फुले सब हराम हैं? सच्चा वही जिनके नाम राम है..? रामदेव, रामपाल, आसाराम और तमाम! सनातन आतंकी तो उसका पुण्य काम? गीता में लिखा है बस वही ज्ञान है? बाकी किताबों का घर क्या काम है? कमज़ोर की आवाज़ शोर है, हाथ उठाए वो तो हिंसा है!  सरकार की लाठी कानून है,  पूंजीवादी की बात तरक्की!