चाह तो बहुत थी पर कहाँ कोई बात हुई,
वो डर गए, हम भी थोड़ा सहम गए,
पर इरादा उनका भी बुरा नहीं था,
हम भी नेकनीयत ले कर रुके रहे,
कुछ लम्हे साथ गुज़ारे,
उसने हमको देखा, हम भी खूब निहारे,
नज़र मिली पर बात कुछ नहीं चली,
कुछ हमने समझा, कुछ उसने भी सोच लिया,
बस ये मुलाकात, मुलाक़ात ही रही,
जो अधूरी थी वो ही पूरी बात रही,
रिश्ता यूँ भी होता है,
क्या मिला, क्या बना,
कौनसा रास्ता,
इस सब से नहीं वास्ता!
बस मैं मैं रहा, वो वो रहा,
वो अपनी दुनिया में,
मैं अपने रास्ते!!
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