सब साफ़ है, कुछ छुपा नहीं है, दिशा है हर लम्हा दशा नहीं है! न किसी का जोर है न कोई कमजोर, न कोई भेद है बीच न कोई किसी ओर! सब मौज़ूद है इस पल में, हलचल हो न हो! आज भी यहीं और कल भी, क्यों न हो? रुकी हुई है सुबह ये आपकी बदगुमानी है, नासमझी कह लीजिए या फिर नादानी है!! जो नज़र में नहीं, है वो भी वहीं है, कभी झूठ इंतज़ार, तो कभी सच यही है!! कहाँ से आए रंग और फिर कहाँ गुम हैं? रंग बदलते हैं रंग जैसे कि हम तुम हैं!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।