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अप्रैल, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुबह की सिफ़ारिश!

सब साफ़ है, कुछ छुपा नहीं है, दिशा है हर लम्हा दशा नहीं है! न किसी का जोर है न कोई कमजोर, न कोई भेद है बीच न कोई किसी ओर! सब मौज़ूद है इस पल में, हलचल हो न हो! आज भी यहीं और कल भी, क्यों न हो? रुकी हुई है सुबह ये आपकी बदगुमानी है, नासमझी कह लीजिए या फिर नादानी है!! जो नज़र में नहीं, है वो भी वहीं है, कभी झूठ इंतज़ार, तो कभी सच यही है!!   कहाँ से आए रंग और फिर कहाँ गुम हैं? रंग बदलते हैं रंग जैसे कि हम तुम हैं!

मर्द नज़र!

एक बदन हैं बस, दो स्तन हैं बस, रास्ते पड़े हैं बस आपके भरोसे हैं बस! ज़रा आंख फेर लो ज़रा हाथ फेर लो ज़रा अकेले में घेर लो, ज़रा नोच-खसोट लो! कुछ ज्यादा ही नखरे हैं, कुछ ज्यादा ही मुकरे है, कुछ ज्यादा ही हंसती है, आख़िर क्या इनकी हस्ती है? "न" कहा तो हाँ है, कुछ न कहा तो हाँ है, जो भी कहा वो हाँ है, "न"का हक कहाँ है? बेवज़ह हंसी होगी इसलिए, कपड़े कम है इसलिए, अकेले निकली है इसलिए, ये शोर इतना किसलिए? बहुत पर निकल आए हैं, बहुत कमर मटकाए है, बहुत आगे ये जाए है, कोई तो सबक सिखाए है!! कुछ तो किया होगा? बिन चिंगारी धुआँ होगा? मर्द से कंट्रोल न हुआ होगा? इज़्जत गई अब क्या होगा? घर बिठा के रखिए, अंगूठे नीचे दबा रखिए, पहले अपनी जगह रखिए, चाहे कोई वज़ह रखिए ! ये मर्द नज़र है, यही नज़रिया भी, ज़ोर लगाना है ताकत का, बस यही एक ज़रिया भी (एक नज़दीकी के साथ ट्रेन में जब वो सो रहीं थी एक मर्द ने छेड़खानी की, गलत तरीके से छुआ, अपने शरीर के अंगों को प्रदर्शन किया! ये कोई खास बात नहीं है, आम बात है।पर उसके बाद क्या हुआ अक्सर नहीं होता।

मैंने क्या किया?

मैंने क्या किया? एक दिन कैसे जिया? आप ही कहिए? मैंने क्या किया? अकेले थी! ये गलती है? अकेले सोई थी, ये कोई दावत थी? सामान हूँ? कोई पकवान हूँ? ट्रेन कोई बाज़ार है? मीट की दुकान और मैं? लेटी-लटकी हुई, लेग-पीस, लज़ीज़? बात मेरी है, पर सिर्फ मेरी नहीं, #metoo समाज़, संस्कृती, सरकार नीति, नियति बताती है क्या नीयत थी!! सवाल है सबसे, आपने कैसे पाले है? इस महान संस्कृति से ये कैसे मर्द निकाले हैं? क्या ख़ुराक है इनकी, और कैसे निवाले हैं? क्या है उपाय? क्या राज़ी तंग हो जाऊं, या एक पिंजरा लूं ओ बंद हो जाऊं? नहीं हैं ये विकल्प मेरे, मेरे पंख हैं बहुतेरे, उड़ना मेरे लिए मुश्किल नहीं! कितने पर काटेंगे? कितनी बार? (एक नज़दीकी के साथ ट्रेन में जब वो सो रहीं थी एक मर्द ने छेड़खानी की, गलत तरीके से छुआ, अपने शरीर के अंगों को प्रदर्शन किया! ये कोई खास बात नहीं है, आम बात है।पर उसके बाद क्या हुआ अक्सर नहीं होता। नीचे लिखा पढ़िए जरूर।) ( *trigger warning- case of sexual harrassment* #metoo  I was travelling from Hyderabad to Bangalore last

कुछ और सफ़र!

a एक और सफर एक और डगर एक और नज़र एक और असर! एक और सुबह, एक और दोपहर, जी भर के किए, फिर कुछ और कसर? ख़ूब नज़ारे, वक्त ख़ूब गुजारे, रह रह के इशारे, क्या है जो पुकारे? बहुत दूर आ गए, कहीं!? बहुत नजदीक आ गए, कहीं!? अगर यही है ज़मीं? फिर क्या है कमीं? क्या छूट नहीं सकता? क्या छोड़ नहीं सकते? क्या जुटा नहीं है अभी? क्या जोड़ नहीं सकते? वो भी हम थे ये भी हम हैं, बहुत ज्यादा थे वहां, यहां थोड़े कम हो गए, फुर्सत से बैठे और हम हो गए!! वहां खुद से शिकायत थी, यहां खुद से गुजारिश है, जो मर्ज़ी है अपनी, वो हो अपनी नवाज़िश है! आगे और भी जाना है? ये कैसा बहाना है? कुछ खो गया है कहीं? या कुछ और गवाना है? हाँ! सफ़र और भी है! डगर और भी हैं, नज़रिया एक यही है, अभी असर और भी हैं, जी तर गया ये सोच, अभी कसर और भी है!!

रास्तों की बातें!

आज दिन भर कितने रास्तों से बात की, नज़रों ने कितनी खामोश मुलाक़ात कीं, नज़ारे दिल खोल कर बतियाते रहे, हम भी  उनकी बातों में आते रहे पैर कर रहे थे शिक़ायत कई बार, क्या करते हम, उनसे नज़रें चुराते रहे, हवा अक्सर हल्के से छू कर गुनगुनाती रही, कभी जोश में आई ओ खिलखिलाती रही। तमाम रंग पहचान हैं ज़मीन आसमान की, लड़ाई नहीं है कोई भी अपनी शान की, पानी बह रहा है, सारी बात साफ किए, छुपा नहीं कुछ, क्या नीयत आप की है? हवा पानी जमीन आसमान, सब सहज, सब आसान! कोई स्पर्धा है क्या? इंसान ओ निसर्ग? कौन बड़ा, कौन महान?

खेल पास फेल!

कौन हैं ये लोग, चौड़ी तेज़ रफ़्तार सड़कों के फुटपाथ पर, चैन की नींद सोए है? या ज़िंदगी के खोए हैं? देश-समाज की तरक्क़ी से बिछड़े हुए, इंसानियत की परछाई में अनदिखे? क्या इनका कोई आधार है? या इनकी कोई भी बात निराधार है? संसाधन कम नहीं है, कमीं है!! सवालों की, नीयत की, इरादों की, पूरे होते वादों की! आप में है? अपनी जी-तोड़ मेहनत के लाचार, कड़वे सच को सब्र से मीठा करने, सपने देख रहे हैं, मुँह ढक सपनी हक़ीकत को fake रहे हैं! वो सुबह कभी तो आएगी... चौकिदार कौन है ओ चौकीदारी किसकी? चुपचाप खड़ें है, जो मुँह ढके पड़े हैं? बोल नहीं सकते या आवाज़ नहीं है? मजबूरी है, क्या, मंजूरी है? आपकी? मच्छरदानी घर है! उनका? सोचिए! उनको क्या शहर है? फुटपाथ उनकी बस्ती, गली उनका हाइवे, कूड़ादान सुपरमार्केट! इनका देश क्या होगा? वही जो आपका है? और इनकी देशभक्ति? गुस्सा निगल जाना? #ThinkBeforeYouVote

#ThinkBeforeYouVote !!

सुबह सो रही है, जाग रही है या भाग रही है? रुकी है कहीं या अटक गई है, या अपने रास्ते भटक गई है? रोशनी की शुरुवात है या अंधेरों से निज़ात, या डिपेंड करता है क्या मजहब, क्या जात? सुबह बन रही है, या हमको बना रही है? शिकायत कोई? किसको सुना रही है? इंतज़ार करें? हाथ पर हाथ धरें? माथे जज़्बात करें? किससे क्या बात करें? सब राय हैं? हक़ीकत? नीयत? यक़ीन! यक़ीनन? डरे हुए हैं! शक़ से भरे हुए हैं! झूठ तमाम से तरे हुए हैं! फ़िर भी, चाहे कुछ, सुनिए, कहिए, गहिए, दिल में रहिए या ज़हन में! रोशनी, रोशनी है, अंधेरा अंधेरा! रोशनी भी भटकाती है! अंधेरा रास्ता भी दिखाता है! उनकी कोई धर्म-जात नहीं, उनको फ़ायदे-नुकसान की बात नहीं! आप तय करिये आप देख रहे हैं? या अपनी नज़र के ग़ुमराह? #ThinkBeforeYouVote 

टेबल लैंड!

सुबह तमाम, पंचगनी आसान, मेज़ जमीं, (table land) मेज़बान बनी, सुबह या शाम, समेट सकते हैं पूरी, आगाज़ भी अंजाम भी, एक ही जगह, न कोशिश, न वज़ह, फ़कत स्थिरता, समझिए, कुछ नहीं, आप! मूर्त हो रहिए, और चारों ओर सब बदलता देखिए इसमें "मैं" कहाँ? गर ये सवाल है? तो अफ़सोस! आप अहं हैं! आपको अपना ख़ासा वहम है! जमीन पर आइए! आप वहीं हैं, आप वही हैं!!

शिकवा ए सुबह!

पूना शहर, जैसे इमारतों का कहर, फर्क पड़ता है? क्या शाम, क्या सहर? फर्क पड़ता है! आपकी नज़र का, उसके असर का, आप पर? पर आप को फुर्सत कहाँ? यूँही गुम होती... एक और सुबह!