सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मैंने क्या किया?


मैंने क्या किया?
एक दिन कैसे जिया?
आप ही कहिए?
मैंने क्या किया?

अकेले थी!
ये गलती है?

अकेले सोई थी,
ये कोई दावत थी?
सामान हूँ?
कोई पकवान हूँ?

ट्रेन कोई बाज़ार है?
मीट की दुकान
और मैं?
लेटी-लटकी हुई,
लेग-पीस, लज़ीज़?

बात मेरी है, पर सिर्फ मेरी नहीं,
#metoo

समाज़, संस्कृती, सरकार नीति,
नियति बताती है क्या नीयत थी!!

सवाल है सबसे,
आपने कैसे पाले है?
इस महान संस्कृति से
ये कैसे मर्द निकाले हैं?
क्या ख़ुराक है इनकी,
और कैसे निवाले हैं?

क्या है उपाय?
क्या राज़ी तंग हो जाऊं,
या एक पिंजरा लूं ओ बंद हो जाऊं?

नहीं हैं ये विकल्प मेरे,
मेरे पंख हैं बहुतेरे,
उड़ना मेरे लिए मुश्किल नहीं!
कितने पर काटेंगे?
कितनी बार?

(एक नज़दीकी के साथ ट्रेन में जब वो सो रहीं थी एक मर्द ने छेड़खानी की, गलत तरीके से छुआ, अपने शरीर के अंगों को प्रदर्शन किया! ये कोई खास बात नहीं है, आम बात है।पर उसके बाद क्या हुआ अक्सर नहीं होता। नीचे लिखा पढ़िए जरूर।)

(*trigger warning- case of sexual harrassment* #metoo 


I was travelling from Hyderabad to Bangalore last night, when a man sexually harrassed me by touching me inappropriately when I was sleeping and later, flashing his genitals. I immediately saught help from my co-passengers, confronted him in presence of a group of people I had woken up, contacted the railway police and the ticket collector. 

A few important things jump to my notice as I went through the process of registering an FIR (which is underway in Anantpur railway station and I shall hopefully get a receipt soon). 

1. The railway police were reluctant to register a complaint and it took a lot of assertion to finally get the complaint registered. "Please leave him, his life will be affected", is what the police officers kept saying on board. They called me a few times on phone as well after getting off with the abuser, and apologizing to me on his behalf. I also got a call from supposedly the abusers father asking me to have mercy on his son. After I demanded an explanation on how he got my number, the "father" never called again. I escalated the case further up by calling the inspectors and meeting them when I got down at Yeshwantpur. And the process of registering the complaint was taken seriously. So, I got a small taste of how hard it is for people, especially those on margins of power, to get a complaint registered. 
2. The Police really need to have special phone numbers that make it clear that the call is from the police. I got so many calls from generic mobile numbers that it was tricky to identify whether they were indeed police. 
3. Even as I am determined to follow up on the case on grounds of principles, I felt a keen sense of how this problem is not limited to the individual harrasser, who is merely 22 years old, is a product of the culture of tolerance towards sexual harrassment and the deeply ingrained view of women as sexual objects. 
4. I am very grateful to the people (one kind young man and a fierce middle-aged woman), who stood by me through the ordeal. We need to collectively stand up strongly, if we want the system to improve. I am very grateful to the man who has agreed to be a witness and extended full support. Parents- do not merely protect your daughters, raise them to be strong and raise your sons such that they can learn to give full respect and autonomy to women as equals.  
5. Will be posting updates about this case. Would appreciate any legal advice or support in personal message, kindly bear with me if I am not able to respond to each message.)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!