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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गूंजती खामोशियाँ!

सब खामोश हैं कोई सुन नहीं सकता? दर्द सारे मज़हबी रंगों में बिकने लगे हैं! बेख़बर अपने खंजरों से, इतने मासूम हैं सारे दोष शिकार के, ऐसे गुनहगार हैं!  किस किस क़त्ल पर भगवान का नाम है, बस एक मत्था टेका के सौ खून माफ हैं! इतनी चुप्पी है या कान के पर्दे फट गए? इतने घिनौने सच, सब धर्म जात में बंट गए! नफ़रत माफ, झूठ माफ, सरेआम कत्ल माफ़? अपने धर्म की शिक्षा सबको कितनी साफ है! घर बैठे हर एक गुनाह की वकालत करते हैं, आंखों पर पट्टी बांध सब इबादत करते हैं! अपनी कमियों ने कितना कमजोर किया है,  इलाज़ ये कि किस किस को दोष दिया है? यूँ नहीं की शहर के सारे आईने ख़ामोश हैं!  किसके हाथों बिक रहे हैं, ये किसको होश है? ज़ुल्मतों की कमी नहीं, और रोशनी कातिल है, किसको इल्ज़ाम दे के अपने ही सब शामिल हैं! (ज़ुल्मतें - अँधेरे)

नया भारत!

चलो मस्ज़िद गिराते हैं, चलो मंदिर बनाते हैं, यूँ ईंट से ईंट बजा कर नया देश बनाते हैं! अल्लाह की शामत आई अब राम विराजी है, भारत का वक्त गया, हिंदुस्तान की बारी है! दाढ़ी टोपी को रौंद दिया, साथ कोइका सर गया, तिलक त्रिशूल का मौसम है दिल ख़ुशी तर गया! बहुत हुआ ये शोर, दिन की पांच अज़ानों का, अब चौबीसों घँटे बस राम नाम ही जारी है! हरियाली के दिन लद गए, भगवा इसपर भारी है, दूर नहीं वो दिन, जल्दी अब, तिरंगे की बारी है! संविधान के सत्तर दोष, सेक्युलरी में सब मदहोश, मनुस्मृति की तगड़ी सोच ताल ठोंक अब भारी है! बहुत हुई बराबरी, क्यों इसकी ललकारी है? शांति लाने के लिए अब ऊंच-नीच तैयारी है! झूठ हमारे सच होंगे, सब धर्मकर्म के वश होंगे, नया ज्ञान, नया इतिहास, ये अपनी होशियारी है!