कितनी करूँ कोशिश
नज़र नेक नहीं होती
भांप लेती है, आँक लेती है,
"फर्क" कितना भी सर छुपाए
उन्हें नाप लेती है
"फर्क" है तो दोष है
रोष है !
तैयार होता
हिंसा का शब्द कोष है,
कम है, ज्यादा है
वादा, इरादा, फ़रियाद, बंटवारा
आकांक्षा, अभिलाषा, ढाढ़स, दिलासा
"मैं" अतीतयुक्त है
कब "मैं" रिक्त होगा
"आज" में जीने को मुक्त होगा
(जे.कृष्णमूर्ति के हिंसा पर उठाये प्रश्नों से उठे प्रश्न)
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