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गुनगुनाता बचपन

हर कोई सशक्त है,
और हर किसी की उलझी आत्मा है,
हर किसी का 
कुछ गुनगुनाता सा बचपन है,
भूले हुए किसी कोने की तली में,
हर किसी के पास बचे हुए टुकड़े हैं सपनों के,
और नोकें नष्ट हुई जिन्दगी की ...

हर किसी ने, एक दिन, कुछ कोशिश की थी,
पर हर किसी को वो हांसिल नहीं,
हर किसी को सरकार से विनती करना चाहिए 
एक कानून अकेलेपन के खिलाफ हो
जिससे हम किसी को भुला न सकें
हर किसी की,
तमाम हलचल होती जिन्दगी है,
पर हर किसी को याद नहीं,
मैं देख सकती हूँ,
कुछ लोग इसे समेट रहे हैं,
और तोड़ भी रहे हैं,
और कुछ जो इसे देख ही नहीं सकते 
पर हर कोई एक अजीब इंसां है
और हर किसी का कुछ गुनगुनाता बचपन है 
एक भूले हुए लम्हे की सतह में .....
(फ़्रांस की प्रथम महिला कार्ला ब्रूनी की एक रचना के इंग्लिश अनुवाद से अनुवादित)

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