इस दीवाली के पटाखों को,
कोई नयी गाली हो जाये,
माँ-बहन की जगह
राम-लखन की विवेचना की जाये!
दीवाली आने वाली है,
ये आज की गाली है,
मजहबी गुंगे क्या समझें,
क्यों कोई सवाली है?
बेशर्मी हर दौर पल रही है,
गरीबी एक जुंए का खेल है,
गरीबी एक जुंए का खेल है,
सच्चाई जाम में ढल रही है!
कस के दो-चार गाली हो जाये,
कस के दो-चार गाली हो जाये,
गीली पटाखे कि थाली हो जाये! :-P
एक एक पटाखा मां-बहन की गाली है,
आपकी फ़ुलझड़ी किसी कि बेहाली है
सारे अनार किसी के रस्तों की दीवार,
दीवाली मना रहे है या दिमागी बीमार?
चल रही है चारों और अतीत की हम्माली,
और हम पर ये इल्ज़ाम की दीवाली पर गाली!
एक एक पटाखा मां-बहन की गाली है,
आपकी फ़ुलझड़ी किसी कि बेहाली है
सारे अनार किसी के रस्तों की दीवार,
दीवाली मना रहे है या दिमागी बीमार?
चल रही है चारों और अतीत की हम्माली,
और हम पर ये इल्ज़ाम की दीवाली पर गाली!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें