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क्या है कि!

11,12,13,14,15, 16, 17,18,19,20, समझ नहीं आता, ये न्यू ईयर क्या चीज़! एक के साथ एक फ़्री, नया सेल आया है! तमाम इश्तेहार, पार्टीयाँ, बॉटलों‌ कि बलि,  किस सच को छुपाने इतना शोर है चलो फ़िर से कुछ भेड़चाल करें, सवालों को जला गर्म माहौल करें! लकीर के फ़कीर आज जश्न-मुबारक है, सुना है आज फ़िर कुछ नया दोहराएंगे !  नया साल आने वाला है, मोटी चमड़ी को, एक और खाल आने वाला है?? बचपन से सुना है हिन्दुस्तानी भेड़चाल, ज़माना अब दिखा रहा है हर हाल! बात पुरानी है, सो तो है! आपकी कौन सी नयी जवानी है? साल बदल रहा है, सो तो है! अब के कौन सी नयी कहानी है? चलिये कुछ नयी बात करें, नया साल, कहीं सुना है पहले! चलो चलो नया साल बनाते हैं, बाल की कोई खाल बनाते हैं! चलो चलो पुराना सब भूल जाते हैं, आसान काम है, नया साल बनाते हैं!

भेड़चाल क्या सवाल?

चलो फ़िर एक साल हो गया पेड़ से टूटा जैसे कोई छाल किसी के हाथों इस्तेमाल कौन सी बड़ी बात है जैसे चल पड़ी कोई अटकी हुई रात है , या मुँह मांगी सौगात है चल दिये उठ कर जैसे कुछ खत्म हो गया जख्म किसका था फ़क़्त एक निशां हो गया तमाम उम्मीदें , चंद हालात , और बिखरे पल चलने को तैयार एक और झोला हो गया ! लम्हे अधुरे रह गये उनका क्या कीजे काबिल कश्तियों को तिनका का दीजे , बाकी सब ठीक है यारब मेरे , मनमर्ज़ी कायनात को पैजामा का कीजे ! दिन बदलने से तारीख़ नहीं बदलती , करवट लेने से तासीर नही बदलती , मंशा , ज़ज्बा , और तमाम कोशिशें गिनती से कोई तामीर नहीं बदलती ! भेड़चाल है, फ़िर क्यों सवाल है, मुबारक हो आपको नया साल है!

150 मुस्कानों का क़र्ज़!

बच्चे भी इंसान है, शायद इसलिए काम आसान है,  इंसाँ गुनहगार है, सजा का हकदार है, रुकती और चलती हुई, साँसों के परे जाके देखो, बच्चे तो 'हमेशा' के लिए हमारे दिलो-दिमाग में घर करेंगे, कोई शक? तो फिर कौन मर गया, क्या वो इंसाँ थे, ज़ाहिर है? वो बचपन भी कभी इंसाँ था, कहाँ खो गया, क्या हो गया? उस दौर के हम इंसाँ है, या बेजान निशाँ हैं? गम होगा, आँसु भी, मायूसी, कुछ जल रहा होगा, कुछ पल रहा होगा, बस एक ही गुज़ारिश है, सर झुका के, बंधे हाथों, आँखों में खून न आने दें, हम आप थोड़े बहुत कम ज्यादा इंसाँ अभी बाकी है, और जाहिर है नाकाफ़ी हैं, दुखी होइए, जी भर रोइये, बस हाथ खड़े मत करना, छलक रहे हैं घड़े, और मत भरना, चलो वक्त को आसाँ कर ले, आँखों में चुल्लू भर सपने भर लें, 150 मुस्कानों का क़र्ज़ है, बस इतना फ़र्ज़ कर लें, दुनिया में हँसी कम नही पड़ने देंगे, Smile Please! (हाल में लाहौर में चिल्ड्रनस लिटरेचर फ़ेस्टिवल में शिरकत करते समय जब हम बच्चों के साथ खेल रहे थे तब हमने एक गाने की लाईन "दिल्ली से मोरा भाई लायो रे बाजरा_ _ _ " को बदलकर "

चलो मुस्कानों को बचाये

चलो आज ज़रा इन्साँ हो जायें,   ज़रा दिल को नफ़रत से बचायें! बस हुआ दो और दो का चार करना,  किसी के खून को हिसाब न बनायें, नहीं हो सकती मोहब्बत तुमसे कोई बात नहीं,  गुज़ारिश इतनी कि ज़रा आईने में देख मुस्करायें खून और अश्कों में फ़रक कब खत्म हुआ,  नादानों को नादानी के मायने कौन समझाये? ना कोई खुश होगा न सुकूँमंद ये यकीं है,  हाथ क्या आया ज़रा कोई हमको समझाये! यही आखिरी रास्ता है कैसे यकीं‌ आया? गुस्ताखी माफ़ हो प्लीज़ ज़रा गौर फ़रमायें आज नफ़रत-गुस्सा कितना आसाँ हुआ,  हो सके तो आज उस बाज़ार न जायें दिल पे हाथ रखें और महसूस करें, आज गरज है उम्मीदों की, न गवायें  please please please.....

रामलछन

राम नाम के काम सब, राम नाम के लच्छन, इज्ज़त से सब खेल रहे राम जपन के बंदर, राम जपन के बंदर सारे बने दुषासन, लाल किले पर चढ़के ये देते भाषण, भाषण के बड़े बीर लगाबें झूठे नारे, संविधान पर बैठ जोर से राम जपारे, जप के ज़ोर से राम राम मस्ज़िद दिए गिराये, नफ़रत के सौदागर अब देस अपना चलायें, देस अपना चलायें राम के सारे जादे, बेच दिए पूरी देसवासी अक्ल के आधे, अक्ल के आधे राम को सारे अंधे, मज़हब के चल रहे तमाम धंधे अंधे, धंधे-अंधे चला रहे माया  का जादू, चला रहे सत्ता अंबानी-अडानी के बाबू अंबडानी के बाबू सब देस को सेब बनायें, बेचेंगे ये मुलक कोई जो जेब गरमाए, गरम जेब के लालच में देसभगत सब आये लालच की भक्ती में सारे राम-लुभाये! रामलुभाये आसा, देव, और श्री के संकर, फूल चढ़ाये बहुत कोई अब फैंको कंकर!

और लाहौर!

यूँ नज़र आये खुद को इन दिनों, अपने ही बड़े काम आये! यूँ मिले अजनबियों से इन दिनों, अब अपनों में उनका नाम आये! यूँ सपनों को संवारे हैं इन दिनों, अपनी हकीकतों को रास आये! इल्म था, एहसास था, अब खबर है, अब के बार जो वहाँ घूम आये! यूँ गले लगाये कि हम तारीख हैं, हम में जो उनको अपने नज़र आये! दिल में थी, जगह उनके, ज़हन में थी हमारे यकीं को रास्ते नज़र आये! नफ़रते तो यहाँ भी तमाम पलती हैं, क्यों उनके गैहूँ में नज़र घुन आये?

लाहौर की ओर

सरहदों का काम रास्ते दिखाना है, रास्ते फ़क्त कमबख्त इन्सां आते हैं! जो सरहदें रोकती हैं वो इंसा को कम करती हैं, चलिए उस और भी कुछ नेक इरादे कर लें! मुसाफिर जब चलते हैं, रास्तों के दिल पिघलते हैं!  यूँ उम्र से कहाँ कोई जवान होता है वो जो आपके पैरों का निशाँ होता है! सरहद सीमा हो जाए तो मुश्किल होगी, हद हो गयी इंसाँ होने की तो क्या इंसाँ?? अपने इरादों से चलिए रुकिये, लकीरों के राम क्यों बनिये?    रास्ते चलते हैं और हम मुसाफिर, सर जो छत उसकी कोई जात नहीं ! आज इस ओर हैं कल उस ओर, जोर के इरादे, क्या इरादों का ज़ोर उम्र भर सफ़र है दो कदम और सही, यूँ भी इंसाँ हुआ करते हैं!  सरहदें ज़हन की दीवारें बनती हैं, वरना दो इंसाँ मुस्करा के बस मिलें! (लाहौर के सफ़र की तैयारी करते हुए साहिल पर मिले चंद ज़जबात)

बाअदब, बामुलाहिज़ा, होशियार

चलने के नये रास्ते इज़ाद होते हैं, घुटनों पर चल लोग आबाद होते हैं तालीम बरसों की आखिरकार रंग लायी है हुक्मउदूली एक कला बन सामने आयी है! वतनपरस्ती फ़िर एक धारदार हथियार है, आप की मर्ज़ी अब सियासी कारोबार है! खुली हवा भी अब एक व्यापार है, हर वीक-एंड़ इसका कारोबार है! रस्ते साफ़ हो रहे हैं लकीरें मिटाने को कत्ल माफ़ हैं अब नये सच जुटाने को जो गुम हैं वो अब गुमशुदा नहीं होते, भटके हुए अब रस्ते नहीं खोते! एकता में सुना बड़ी ताकत होती है,  और ये भी कि ताकत बहका देती है! बाअदब, बामुलाहिज़ा, होशियार, अच्छे दिन आ रहे हैं! हम सब एक हैं, अब भारत स्वच्छ होगा भारत माता के जय, विजय, राम, नरिनदर बेटियाँ अच्छी घर के अंदर हकीकत तारीख बन रही है  और तारीख की हकीकत बदलती है,  सियासी गिरगिट है गोया बदलते रुख से रंग बदलती है!

सच खबर नज़र असर

  जमूरियत के सब जमूरे बन गये हैं, मुफ़्त मिल रहा है वो सच खरीदे हैं! चौबीसों सात आप पर पैनी नज़र है तमाशाई कौन है ये फ़रक कैसे कीजे? खबर ये है कि आपको खबर ही नहीं, और आपको खबर है कि खबर ही नहीं! आपके सच ऐसे हैं कि आपको सच का असर नहीं, वो नज़र आयेगा कैसे जो आपको नज़र ही नहीं! जो आपको असर कर दे उसकी खबर है, जो खबर है उसका आपको असर ही नहीं! क्या खबर है और किसको खबरदार करें, बिक गये रद्दी में अब जिसको अखबार करें!

अपना जूता अपने सर!

अपने ही पैरों खड़े हैं, यूँ नहीं कि किसी से बड़े हैं! अदब है, यूँ नहीं कि आप बड़े हैं, नज़र आता है कि सीधे खड़े हैं! हमसे मत करिये रवायतों का जिक्र चाल चलन को हम चिकने घड़े हैं! कोई साथ ले कर नहीं जाता, गले शायद धूल बन कर पड़े हैं! सच यूँ भी हजम नहीं होता उपर से करेले नीमचढे हैं! एकतरफ़ा आईनों के जंगल में, सब अपने ही रस्तों के बड़े हैं! हमसे नहीं होती ईमारतें उँची, एक बूँद में भी समंदर बड़े हैं! वो सफ़र ही क्या जो खत्म है, इसी जिद्द पर आज भी अड़े हैं! जो पैर है वो ही जूता सर है, हम आदतों के खास बिगड़े हैं!

कचरा पुराण!

समझ में नहीं आया देखा तमाम कचरा ढेर, अंबार इंसान की लीला अपरमपार मुरख थोड़े, पहले उबकाई, फ़िर बात समझ में आयी सही-गलत, अच्छा-बुरा, छोटा-बड़ा, सफ़ेद-काला जैसे ही, गंदगी-कचरा भी सम्पूरक हैं, दीवाली है, घर की सफ़ाई लाजमी है, पर लॉ ऑफ़ कंसरवेशन ऑफ़ कचड़ा, जो मशहूर वैज्ञानिक, “पोंगा पंड़ित" की देन है, के अनुसार, कचरा खत्म नहीं कर सकते, उसकी केवल जगह बदल सकते हैं, तो लो घर साफ़, गली, मोहल्ला, शहर, गंदा बदबूदार और इरादा देखिए कितना नेक है ओह! लक्ष्मी आप! बाहर बदबू है न बहुत,  हैं हैं हैं (खीसें निपोर) आइये न, हमारे घर के दरवाज़े हमेशा खुले हैं, कुछ इंसान कितने दूध के धुले हैं मूरख में, अब समझा ये, वर्ण-व्य्वस्था का विज्ञान, छूआ-छूत का नया आयाम मन को साफ़ रखने के लिये अपने इरादों की बदबू विचारों की गंदगी, दिमाग की कीचड़, सेहत के लिये अच्छी नहीं, इसे एक वर्ण -समुदाय संभाले सब की भलाई के लिये कुछ को तो अछूता रहना ही पड़ेगा, यही विधि-विधान है, शास्त्रों का ज्ञान है गंदगी सोचने-फ़ैलाने वाला = साफ़ होगा, शाश्वत, ब्राह्मण सफ़ाई करने वाला -

बच्चे

बच्चे क्यों अपने या पराये होते हैं? रोज़ रोज़ बच्चे गायब होते हैं, रोज़ कितने नाज़ायज़ होते हैं, फ़िर क्यों पैदा होते हैं, कौन सी जरूरतों के जायज़ होते हैं! क्यों होते हैं दिखाने कि चीज़? अपना ही जरूरत का घर, कपड़ा, सामान, और अपने खून का बच्चा काम आसान! बच्चे हैं अपने या अपने अहं का शिकार हैं, नमक-मिर्ची स्वाद अनुसार घर का अचार हैं! क्या आप बच्चों के सलाहकार हैं, दोस्त, या उनके भविष्य-विधाता? बापगिरी, माँगिरी, दादागिरी, टीचरगिरी,आदर्शगिरी, कब मिलेगी बच्चों को खुली हवा की साँस फ़िरी! क्या आपको मालूम है अब हॉस्पिटल में पंड़ित बैठते है और मुहुर्त के हिसाब से लोग ऑपरेशन कराते हैं कि सही समय बच्चा पैदा हो! मुहूर्त पर पैदा करते हैं, बच्चों का मैदा करते हैं, कैसे इनको बड़ाएंगे, नमकीन बना के खायेंगे! बच्चे भगवान का रुप? क्या इससे घटिया मज़ाक कोई हो सकता है? पैदा हुए तब भगवान का रूप, लड़्की हुए तो बददुआ खूब, मज़बुरी हुई तो बाल मज़दूर, किस बात का है सभ्य गुरूर! दुनिया का बेइंतहा बेशरमपन, और हमारा बचपन,  पचपन बहाने आपके, और बलि एक मासूम सचपन!  बचपन किस चिड़िया का नाम है, हम

ज़रा ज़रा!

जरा सा मुस्कराना उनका नज़रें फ़िराना ज़रा सा ज़रा सी हौंसला आफ़ज़ाई तड़पाना जरा सा जरा सा बल खाना, लड़खड़ाना जरा सा जरा सा छेड़ना, तड़प जाना जरा सा जरा जुल्फ़ों का उड़ना, बिखर जाना जरा सा दिले आबाद का, दिले-बरबाद से फ़र्क जरा सा ज़रा सा एक बड़ाये हाथ, साथ एक दे ज़रा सा मुश्किल नहीं मुसाफ़िर, सफ़र जिंदगी का ज़रा सा ज़रा सी आकांक्षायें और लालच ज़रा सा बहुत है, इंसान का बहक जाना जरा सा ज़रा सा हौसला रखना, हिम्मत ज़रा सी ज़रा सा गम, ज़रा खुशियाँ, ज़िंदगी ज़रा सी ज़रा से उनके सपने हैं ज़रा हमने भी देखे हैं, साथ था, फ़िर भी रात सो लिये ज़रा सा! ज़रा सा जज़्बा चलने का, साथ कुछ दूर तलक ज़रा सी कोशिश किसी मोड़ कोई और फ़लक!