सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

150 मुस्कानों का क़र्ज़!

बच्चे भी इंसान है,
शायद इसलिए काम आसान है,
 इंसाँ गुनहगार है,

सजा का हकदार है,

रुकती और चलती हुई,
साँसों के परे जाके देखो,
बच्चे तो 'हमेशा' के लिए
हमारे दिलो-दिमाग में
घर करेंगे, कोई शक?

तो फिर कौन मर गया,
क्या वो इंसाँ थे,
ज़ाहिर है?

वो बचपन भी कभी इंसाँ था,
कहाँ खो गया, क्या हो गया?
उस दौर के हम इंसाँ है,
या बेजान निशाँ हैं?

गम होगा, आँसु भी, मायूसी,
कुछ जल रहा होगा,

कुछ पल रहा होगा,
बस एक ही गुज़ारिश है,
सर झुका के,
बंधे हाथों,
आँखों में खून न आने दें,



हम आप थोड़े बहुत कम ज्यादा
इंसाँ अभी बाकी है,
और जाहिर है नाकाफ़ी हैं,
दुखी होइए, जी भर रोइये,
बस हाथ खड़े मत करना,
छलक रहे हैं घड़े,
और मत भरना,

चलो वक्त को आसाँ कर ले,
आँखों में चुल्लू भर सपने भर लें,
150 मुस्कानों का क़र्ज़ है,
बस इतना फ़र्ज़ कर लें,
दुनिया में हँसी कम नही पड़ने देंगे,
Smile Please!

(हाल में लाहौर में चिल्ड्रनस लिटरेचर फ़ेस्टिवल में शिरकत करते समय जब हम बच्चों के साथ खेल रहे थे तब हमने एक गाने की लाईन "दिल्ली से मोरा भाई लायो रे बाजरा_ _ _ " को बदलकर "पेशावर से मोरा भाई लायो रे बाजरा_ _ _" कह के खेला था तब हमें ये कतई गुमान नहीं था कि पेशावर का नाम हमारे कानों‌ में एक आह बन के गुँजेगा। 'जाने दो_ _ _' तो नहीं कह सकते पर कहना होगा, और इसलिये के बच्चों की मुस्काराहटों  पर हमला हुआ है, और ये मुस्कराहटें कम न हों इतना तो कर्ज़ वो 150 बच्चे हम सब पर छोड़ कर गये हैं तो मुस्कराना तो होगा, हर हाल में )

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!