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अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्वाति विचार

मेरी जन्नत हैं और मुझे नसीब हैं ,  कुछ ऐसे ही मेरे अज़ीज़ हैं , अपने इरादों के पूरे यकीन हैं , नज़ाकत के अपनी ज़हीन है चुप नहीं , खामोशी उनका यकीन है , यूँ अपने हुनर के बड़े नामचीन हैं , तेवर में आये तो इल्ज़ाम संगीन हैं चंद लम्हों में तबीयत के रंगीन है , हर लम्हा ज़ज्बा - ओ - ज़बीं हैं यार के मेरे शौक बड़े हसीं हैं मीठे मर्ज़ी के , बाकी खट्टे - नमकीन हैं , रोज़ दावत है ज़ो आप खास शौकीन हैं तमाम चीज़ है मोहब्ब्बत एक हुनर भी है , एक उस्ताद है तो एक शागिर्द भी है ! काफ़िर है खुदा को फ़िर हाफ़िज़ कौन है ,  अपनी ही गुमानिओं से वाकिफ़ कौन है खुदमुख्तयार है पर अकेले चलना नागवार है ,  रिश्तों के मालिक मेरे खूब होशियार हैं !

कमल की कीचड़!

हाल बताते हैं कि हालात क्या होंगे! लातों के भूत से सवालत क्या होंगे! माना छप्पन का सीना, पर खोखला है, ये आदमी पूरा का पूरा ढकोसला है! छप्पन का सीना है, कि कोई बड़ा कमीना है, ईलेक्शन का महीने में अब बीबी को चीना है! अगर करते हप अपनी बीबी से प्यार तो मोदी सरकार से करो इनकार ! नाम बेचते हैं अपना और अपने ही गुण गाते हैं, कैसी भूख है कि अपनी शरम बेच के खाते हैं! कलयुग कहते हैं कमल से कीचड़ बहती है, सिरफ़िरी दुनिया उसे मोदी कहती है!! नाम नरिंदर, सीना धरमिनदर, मूँ मिंया मिठ्ठू है, शेर की खाल में छुपा भेड़िया संघ का ट्ट्टू है!

भा. ग. जा!

मंदिर यहीं बनाएंगे, मूरख कौन समझाएंगे, लौटते में बुद्धू कई घर फ़ूँक आयेंगे! दुनिया बड़ी भ्रष्ट है आपको बड़ा कष्ट है, फ़ासीवादी ताकतों से पर क्यों एड़जस्ट है! शब्द का फ़ेर है, देर है अंधेर है, जागे हैं आप या अभी थोड़ी देर है! कमल से कीचड़ निकलेगी संभल के धरिये, ग्ंदगी फ़ैलाने का इससे बेहतर तरीका क्या? समझ समझ का फ़ेर है ये आम है कि बेर है, चश्मे उतार के देखिये ये देर नहीं अंधेर है चारों और चमकती है, आज कल रोशनी बिकती है, कोई भी अखबार देख लीजे वो तस्वीर किसकी है हमारा सच एक,धर्म एक, मालिक एक, दूसरा कुछ भी हमारे त्रिशूल को भेंट!

छप्पन चालीसी!

छ्प्पन का सीना है और दुम पैरों में छिपाई है,  असलियत सियार की न समझो हातिमताई है कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा नरिंदर ने कुनबा जोड़ा दुनिया का कचरा भर कर हो गया छप्पन चौंड़ा! ढोल पीट कर खुद का बखान करते हैं,  वो लोग जो कब्रों को मकान करते हैं! सरकस-ए-जमहूरियत और बंदर मदारी हैं,  नयी चीज़ है बाज़ार में बिक्री ज़ारी है! गांधी गांव का चौथा बंदर, सुनते हैं नाम नरिंदर,  देख बुरा, बोल बुरा, बुरा सुनना इसका मनतर! नर, इंदर है या नर, भक्षी, क्या इसका निवाला है,  किसको पूछें कौन बतायें, सच का बस हवाला है! नरिंदर की शादी है नरिंदर की बारात है, मत आईये "आप" ये किसी और का गुजरात है! छप्पन का सीना है और अरविंद के नाम से पसीना है, किस तरह का मर्द नरिंदर, समझाये अगर कोई चीना है? ड़र के मारे सीना छप्प्पन हो गया, कोई खिलाड़ी बड़ा कच्चन हो गया!